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चादि -
अथ द्रव्य प्रकाश तिरुयते
अन्त
( १४० )
दूहा
अज अनादि अवरख गुनी, नित्त चेतनावान | प्रमुं परमानन्दमय, सिव सरूप भगवान ॥१॥
अथ षट् द्रव्य के नाम सबैया
प्रथम जो धर्म वव्य, दूसरौ बधर्म द्रव्य, तोसरौ थाकास पुनि, लोका लोक मान है । चौधौ काल द्रव्य, एक मुदगल द्रव्य रूपी, निज निज सत्रावंत, अनंत धमनि है ॥ पांचौ है अचेतन जू, चेवना सरूप लीये, घट्टौ ज्ञान वान द्रव्य, चेतन सुजान है । स्यादवाद नाव लोमै तीनौ अधिकार कामैं, ग्रंथ को आरम्भ कीनौ, ग्रंथ ज्ञान भनि है ॥
पूर्व कधीसर के गुन वरन (न) स. ३१ पाठक सुपाठही के निवारन घाउही कै, हंसराज राजपति नामै हंसराज है । ताके कौने हैं कलश रात पड़वीस जत, ज्ञान ही के जोन अरु दंशन के राज " तत्व के पिधान, जान, ताही को निधान मान, विमल अमल सब, ग्रन्थ सिरताज थापा पर भेद कर, पर ब्रह्म भाव भर शुद्ध सरद्वान घर नर ताके काज है ॥५३॥ हिन्दू धर्म चीकानयर, कीनौ ख चौमास ।
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तहाँ एह निज ज्ञान मैं, कीयो मन्थ अभ्यास ॥ ५४ ॥
अथ कवीसरके गुरु के नाम कथन स० ३१
वर्तमान काल बित, आगम सकल विच, जगमें प्रधान ज्ञान बान सब कहे है । जिनवर धरम पर, जाफी परतीति बिर, और मत वात चित, माहि नहिं गई है । जिनदन्त सूरि पर, कही जो क्रिया प्रवर खरतर खरतर शुद्ध रीति कहै है । पुन्यके प्रधान, प्यान सागर सुमतिही कै, साधू रंग साधु रंग राज सार लहैं हैं ॥५५॥
सब पाठक सिर सेहरी, राज सार गुन बनि ।
विचरै धारज देश में, मविजन छत्र समन || ५६ ॥