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(१० । स्थूलि भद्र छतीसी । पं० ३७ रचयिता-कुशतालाभ । आदि
साद शरद चंद्र कर निर्मल, ताके चरण कमल चितलाइकि । सुरणात संतोष दोइ अमण कू, नागर चतुर सुनहु चितचाहकि ॥ कुशललाम ति मानन्द मरि, सुगुरु प्रसाद परम सुन्ध पाइकि । करिहं थूलभद्र छत्तीमी प्रति मन्दर पदबंध बनाइकि । । ।
वमा वाइक मुधी भयर लजित मुग्छि, मोच करि मुगुरु कर पाम पाई । चूक अब मोहि परी चण ताद सिर धरि, ঋণ ও আখ মা ।। धन्य धूलिभद्र रिषि निर्मल पाव, नाहि कर सारस पूण नर कहाव । घरति जे अहम तप सुजस तिनका,
गृवन कुशाल कवि परम श्रानन्द पावर । ३.७ ।। प्रनि-गुटकाकार पत्र में ६८ ! पं० १३, २४ !
[ अनूप संस्कृन लाइब्रेरी
(११) अलक बत्तीसी-रचयिता-मीतारामजी अथ मीतारामजी कृत अनक बसीमी लिख्यते ।
देह सारदा बरपते, सीपत करत प्रनाम । पतीमी दोहा कहाँ, पलक बसीसो नाम ।
कमल फूल विधिना रच्यो, निय पानन मतिमूल । मनोपान मकादं करि, अलक अलि उनिल ॥