________________
गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ होते रहने से अपनी सुरक्षा के लिए ये लोग बहुत बड़ी संख्या में राजस्थान मे आकर आबाद हो गए। गुर्जर राजपूत स्वभावत ही शूर, वीर, वीर और गम्भीर होते है । माता और पिता
गगाराम जी तातीजा ग्राम के रहने वाले गुर्जर राजपूत थे। इनकी धर्मपत्नी का नाम थासरूपा देवी । पति और पत्नी दोनो समान स्वभाव के थे । सन्तो की सगति मे विशेप अभिरुचि रखते थे । जन-सन्तो का जब कभी योग मिलता, तो धर्म-कथा सुनने अवश्य पहुँचते थे । धर्म-चर्चा में उन्हे विशेष रस था।
गगाराम जी और सरुपा देवी के अन्य भी कई पुत्र और पुत्रियाँ थे । परन्तु उनका सबसे छोटा और सबसे प्यारा पुत्र था-रत्नचन्द्र । बुद्धि मे चतुर, रूप मे सुन्दर और स्वभाव मे मधुर । 'रत्न' का जन्म-विक्रम संवत् १९५० मे, भाद्र मास की कृष्णा चतुर्दशी के शुभ मुहूर्त मे हुआ था।
बाल्य-काल
रत्लचन्द्र का जीवन सुखद और शान्त था । माता का वात्सल्य, पिता का स्नेह और अपने से बडे भाई-वहिनो का प्रेम उसे खूब मिला था । रूप और बुद्धि की विशेषता के कारण ग्राम के अन्य लोग भी उसकी प्रशंसा करते थे। चारो ओर से उसे आदर मिलता था । रत्न सस्कारी वालक था । अत उसमे विनय, विचार-शीलता, मधुर-वाणी और व्यवहार-शीलता आदि गुण खूब विकसित हुए थे। एक गुण उसमे विशिष्ट था-चिन्तन करने का । जीवन की हर घटना पर वह विचार और चिन्तन करता था। अपने साथियो के साथ मे खेल-कूद भी करता था, परन्तु उसकी प्रकृति की गम्भीरता व्यक्त हुए बिना न रहती थी । वह खेलता-कूदता भी था, नाचता-गाता भी था, हंसता-हंसाता भी था, और रूठता-मचलता भी था । बालस्वभाव सुलभ यह सब कुछ होने पर भी उसकी प्रकृति की एक विलक्षणता थी-चिन्तन और मनन । प्रकृति के परिवर्तनो की घटनाओ को वह बड़े ध्यान से देखा करता था, और उन पर घटो विचार करता रहता था। मृत्यु-दर्शन और वैराग्य
रलचन्द्र अभी किशोर अवस्था मे ही था । एक दिन उसने अपनी आँखो से मृत्यु का साक्षात्कार कर लिया । उसने देखा, कि जगल मे घूमते-फिरते एक सुन्दर स्वस्थ गोवतन (बछडे) पर एक क्रूर सिंह ने सहसा आक्रमण कर दिया । कुछ ही क्षणो मे उसे मारकर खा गया । उक्त दारुण घटना रत्नचन्द्र के लिए एक बोध-पाठ बन गई । अभी तक उसने जीवन की सुपमा ही देखी थी । आज जीवन के विपरीत-भाव क्रूर मृत्यु को भी देख लिया।
वह जन्म, जीवन और मरण पर विचार करने लगा । यह जन्म अज्ञात है। यह जीवन सुन्दर है। परन्तु यह मृत्यु क्या है ? यह बहुत क्रूर है, भयकर है । वह गम्भीर होकर जन्म, जीवन और मरण के