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________________ वोध-पाठ दिया था। यही कारण है कि भारतीय सस्कृति में सवको भुला कर भी गुरु को भूलने की भूल नहीं की जाती। जिस गुरु ने हम सब को विमल विवेक और विचार दिया, जिसने पवित्र आचार और व्यवहार दिया तथा जिसने अडिग और अडोल आस्था एव निष्ठा दी, उसी गौरवमय गुरु गुरुदेव श्रद्धेय रलचन्द्र जी महाराज की इम पुण्यवती गती के शुभ अवसर पर हम अपने मन के कण-कण से श्रद्धा-सुमन समर्पित करते है । महान् भाग्यशाली है, हम कि हमे इस शुभ अवसर पर "स्मृति-ग्रन्य" के सम्पादन और सकलन का सौभाग्य मिला। जितनी और जैसी गुरुदेव के जीवन पर मामग्री अपेक्षित थी, वैसी उपलब्ध नहीं हो सकी । प्रयत्न चाल रखना है । गुरुदेव के जीवन पर खोज अनुसन्धान और अन्वेपण चालू रखना है । आगरा के श्रावक प्रभुदयाल जी के प्राचीन भण्डार मे से जो सामग्री उपलब्ध हो सकी है, उसका उपयोग किया गया है। पूज्यपाद मन्त्री श्री पृथ्वीचन्द्र जी महाराज से जो सामग्री मिली, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आगरा के वयोवृद्ध और ज्ञान-वृद्ध श्रावक श्री वादूराम जी शास्त्री से सम्प्रदाय की बहुत-सी प्राचीन वाते जानने को मिली है । स्मृति-ग्रन्थ के निर्देशक पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री जी महाराज ने तो हमारे मार्ग को कदम-कदम पर सरल और सीधा बनाया है। आपकी महती कृपा का ही यह फल है, कि 'स्मृति-प्रन्य' इतना सुन्दर बन सका। ग्रन्थ-प्रकाशन समिति के सयोजक सेठ कल्याणदास जी जैन और वर्तमान मे आगरा के नगर प्रमुख ने वडी उदारता के साय अपना पूरा सहयोग दिया है। श्री सोनाराम जैन के सहयोग को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता । इसके अतिरिक्त स्मृति-ग्रन्थ के प्रूफ सशोधन मे श्री शैलेन्द्र कुमार जैन, एम० कॉम ने, सुमतकुमार जैन, वी० एस सी ने, प्रभातकुमार जैन बी० एस सी. ने और विजय कुमार जी ने जो सहयोग दिया है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। प्रस्तुत स्मृति-अन्य की सम्पादक समिति के समस्त सदस्यो को हम धन्यवाद देते है, जिनका सुन्दर सहयोग हमे मिला। विशेपत आगरा कालेज के संस्कृत-विभाग के अध्यक्ष थी डा. राजकुमार जी जैन एम० ए० साहित्याचार्य से भी इस स्मृति-ग्रन्थ मे पर्याप्त सहयोग मिला है । स्मृति ग्रन्थ के उन महान् लेखको के प्रति भी हम अपनी कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हैं, जिन्होने अपने व्यस्त जीवन मे से समय निकालकर अपने सुन्दर लेख और श्रद्धाञ्जलि भेज कर ग्रन्थ को समृद्ध और सुशोभित बनाया है। अनेक महानुभाव लेखको के लेखो को हम स्थानाभाव के कारण प्रकाशित नहीं कर सके है । कुछ लेखको के लेख वहुत विलम्ब मे आए, तब तक ग्रन्थ का अधिकाश भाग छप चुका था। अन जिन महानुभावो के लेख छपने से रह गए है उनसे हम क्षमा याचना करते है। डा. हरिभाकर शर्मा विजय मुनि कविरत्न शास्त्री, साहित्यरत्न
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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