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वेदसुत्ताणि सूत्र २२
मातियं णं भिक्ख-पडिम पडिवनस्सनो कप्पति सीमोग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेग वा
हत्याणि वा, पायाणि वा, दंताणि वा, अच्छीणि वा, मुहं वा, उच्छोलित्तए वा, पधोइत्तए वा,
नन्नत्य लेवालेवेण वा भत्तमासेण वा।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को विकट गीतोदक या विकट उष्णोदक (अचित्त शीतल या उप्ण जल) से हाथ, पैर, दांत, नेत्र या मुन्न एकवार धोना नयवा वास्वार धोना नहीं कल्पता है।
केवल मल-मूत्रादि से लिप्त शरीर के अवयव और भक्तः पानादि से लिप्त हाथ-मुंह को छोड़कर।
सूत्र २३
मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्त
नो कप्पति आतस्स वा, हत्यिस्त वा, गोणस वा, महिसस्त वा, सीहस्स वा, वाघस्त वा, वगस्त वा, दीवियस्त वा, अच्छस्स वा, तरन्चत्स वा, परासरस्त वा, सोयालस्त वा, विरालस्त वा, केकित्तियत्स चा, ससगस्स वा, चिखलस्स वा, सुणगस्त वा, कोलसुणगस्त वा, दुस्स वा आवयमाणस पयमवि पच्चोसक्कित्तए । अदुट्ठस्स आवयमाणस्त कप्पइ जुगमित्तं पच्चोसक्कित्तए।
मालिकी निनु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार के सामने (विहार करते समय) अश्व, हत्ती, वृपन, महिप, सिंह, व्याघ्र, वृक (भड़िया), द्वीपि (चीता), अक्ष (रीट), तरक्ष (तेंदुला), पराशर (वन्य पशु), शृगाल, विडाल, केकित्तक (सर्प), गगक विक्खल (वन्य पशु), मुनक (श्वान), कोलगुनक (जंगली शुकर) आदि दुष्ट (हिंसक) प्राणी आ जाये तो उनसे भयभीत होकर एक पैर भी पीछे हटना नहीं कल्पता है।
यदि कोई दुष्टता रहित पशु (गाय, भैस आदि) मार्ग में सामने ना जाए तो (उसे जाने देने के लिए) युग-परिमाण (चार हाथ) पीछे हटना कल्पता है ।
सूत्र २४
मासियं पंभिक्खु-पडिमं पडिवनस्तकप्पति छायाओ "सीयं ति" नो उहं इयत्तए, उहाओ "उण्हं ति" नो हायं इयत्तए। जं जत्य जया सिया तं तत्य तया अहियासए ।