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छेदसुत्ताणि सूत्र १० ___मासियं णं भिक्षुपडिमं पडिवनस्स कप्पइ तओ उवस्सया अणुण्णवेत्तए, तं जहा
१ अहे आराम-गिहं वा २ अहे वियड-गिहं वा ३ अहे रुक्तमूल-गिहं वा
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों की आज्ञा लेना कल्पता है, यथा
१ अधः आरामगृह, २ अधः विवृतगृह, ३ अधः वृक्षमूलगृह ।
सूत्र ११
मासियं णं भिक्षु-पडिमं पडिवनस्स कप्पति तओ उवस्सया उवाइणितए, तं चेव ।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपायों में ठहरना कल्पता है, यथा
पूर्ववत् (सूत्र है और १० के समान ।)
सूत्र १२ ____ मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स कप्पति तओ संथारगा पडिलेहित्तए, तं जहा
१ पुढवि-सिलं वा, २ कटु-सिलं वा, ३ अहा-संथडमेव वा।
मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों (शय्या आसनों) का प्रतिलेखन करना कल्पता है, यथा--
१ पृथ्वी शिला=पत्थर की बनी हुई शय्या, २ काष्ठ शिला लकड़ी का बना हुआ पाट; .. ३ यथासंसृत-तृण-पराल आदि जहाँ पर पहले से बिछा हुआ हो ।