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छेदसुत्ताणि ४ एकाकीविहार समाचारी-किस समय किस अवस्था में अकेले विहार
करना चाहिए, इस बात का ज्ञान कराना। यह आचार विनय है।
सूत्र १७
प्र०-से कि तं सुय-विणए ? उ०-सुय-विणए चउविहे पण्णत्ते । तं जहा१ सुत्तं वाएइ,
२ अत्यं वाएइ, ३ हियं वाएइ,
४ निस्सेसं वाएइ। से तं सुय-विणए । (२) प्रश्न-भगवन् ! श्रुतविनय क्या है ? उत्तर-श्रुतविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे१ सूत्रवाचना-मूल सूत्रों का पढ़ाना । २ अर्थवाचना-सूत्रों के अर्थ का पढ़ाना । ३ हितवाचना-शिष्य के हित का उपदेश देना। ४ निःशेषवाचना-प्रमाण, नय, निक्षेप, संहिता, पदच्छेद, पदार्थ, पदविग्रह, चालना (शंका) प्रसिद्धि (समाधान) आदि के द्वारा सूत्रार्थ का यथाविधि समग्न अध्यापन करना-कराना। यह श्रुतविनय है।
सूत्र १८
प्र०--से कि तं विक्खेवणा-विणए ? उ०-विक्खेवणा-विणए चउन्विहे पण्णत्ते । तं जहा१ अदिट्ठ-धम्म दिट्ठ-पुन्वगत्ताए विणयइत्ता भवइ, २ दिट्टपुत्वगं साहम्मियत्ताए विणयइत्ता भवइ, ३ चुय-धम्माओ धम्मे ठावइत्ता भवइ, ४ तस्सेव धम्मस्स हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेसाए, अणुगामियत्ताए
अन्मुत्ता भवइ । से तं विक्खेवणा-विणए । (३)