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छेवसुताणि
सदेवमणुयासुराए जाव-बहूई वासाई केवलि-परियागं पाउणइ, पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं भाभोएइ, आभोएत्ता भत्तं पच्चक्खाएइ, पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाई छेदेइ । तो पच्छा चरमेहिं ऊसास-नीसासेहि सिज्झति जाव-सव्वदुक्खाणमंतंकरेइ ।
उस समय वह अरहन्त भगवन्त जिन केवलि सर्वज सर्वदर्शी हो जाता है।
वह देव मनुष्य आदि की परिपद में धर्म देशना देता हुता....यावत्....अनेक वर्षों का केवलि-पर्याय प्राप्त होता है। आयु का अन्तिम भाग जानकर वह भक्त-प्रत्याख्यान करता है। अनेक दिनों तक आहार त्याग कर अनशन करता है । बाद में वह अन्तिम श्वासोच्छवास लेता हुआ सिद्ध होता है। यावत् सब दुखों का अन्त करता है।
सूत्र ५२
एवं खलु समणाउसो! तस्स अणिदाणस्स इमेयारूवे कल्लाण-फल-विवागे जं तेणेव भवग्गहणणं सिज्सति जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ।
हे आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान रहित कल्याणकारक साधनामय जीवन का विपाक-फल यह है कि वह उसी भव से सिद्ध होता है...यावत्...दुःखों का अन्त करता है।
सूत्र ५३
तए णं ते बहवे निग्गंथा य निग्गंधीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए
एयमझें सोच्चा णिसम्म समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोयंति पडिक्कम्मति जाव-अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जति ।
उस समय उन अनेक निग्रंथ-निर्ग्रन्थियों ने श्रमण भगवान महावीर से पूर्वोक्त निदानों का वर्णन सुनकर श्रमण भगवान महावीर को वंदना, नमस्कार