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बहु भत्ताई अणसणाई छेवेज्जा ?
हंता छेदेज्जा ।
छेदित्ता आलोइए पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवति ।
वह श्रमणोपासक होता है । जीवाजीव का ज्ञाता... यावत्... निर्ग्रन्थनिग्रन्थियों को प्रासुक एषणीय अशनादि देता हुआ जीवन बिताता है । इस प्रकार वह अनेक वर्षों तक रहता है ।
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प्रश्न - क्या वह रोग उत्पन्न होने या न होने पर भक्त प्रत्याख्यान करता है ?
उत्तर - हां करता है ।
प्रश्न - क्या अनशन करता है ?
उत्तर - हां करता है ।
वह आहार का त्याग करके आलोचना एवं प्रतिक्रमण द्वारा समाधि को प्राप्त होता है ।
जीवन के अन्तिम क्षणों में देह छोड़कर किसी देवलोक में देव होता है ।
छेवसुत्ताणि
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सूत्र ४६
एवं खलु समणाउसो ! तस्स नियाणस्स इमेयारूवे पाव - फलविवागे, जे गं नो संचाएति सव्वाओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।
सूत्र ४७
हे आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान शल्य का यह पापरूप विपाक फल है कि वह गृहस्थ को छोड़कर एवं सर्वथा मुंडित होकर अनगार प्रव्रज्या स्वीकार नहीं कर सकता है ।
नवमं णियाणं
एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते जाव
से य परक्कममाणे दिव्व- माणुस एहि काम भोगेहि निव्वेयं गच्छेज्जा"माणुस्सा खलु काम-भोगा अधुवा, असासया, जाव- विप्पजहणिज्जा । दिव्वा वि खलु कामभोगा अधुवा जाव - पुणरागमणिज्जा ।