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छेदसुत्ताणि
से णं पडिसुणज्जा? णो इणठे समठे ! अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणाए । से य भवइ महिच्छे, महारंभे, महा-परिग्गहे, अहम्मिए जाव-दाहिणगामी नेरइए, आगमिस्साए दुल्लहवोहिए या वि भवइ ।
प्रश्न-उस पूर्व वणित पुरुष को तप-संयम के मूर्तरूप श्रमण-ब्राह्मण केवलि-प्ररूपित धर्म का उभय काल (प्रातः-सायं) उपदेश करते हैं ?
उत्तर-नहीं, वह श्रद्धा पूर्वक नहीं सुनता है अतः वह धर्म श्रवण के अयोग्य है।
वह अनन्त इच्छाओं वाला महारंभी-महापरिग्रही अधार्मिक...यावत्... दक्षिण दिशावर्ती नरक में नैरयिक रूप में उत्पन्न होता है। भविष्य में उसे बोध (सम्यक्त्व) की प्राप्ति दुर्लभ होती है । सूत्र २५
तं एवं खलु समणाउसो ! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे फल-विवागे, जं णो संचाएइ केवलि-पण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए।
हे आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान शल्य का ही यह विपाक है। इसलिए वह केवलि प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण नहीं कर सकता है।
बिइयं णियाणं सूत्र २६
एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते, तं जहाइणमेव निग्गथे पावयणे सच्चे जाव-सव्वदुक्खाणं अंतं करेति । जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवद्विया विहरमाणी, . पुरा दिगिछाए जाव-उदिण्ण-काम-जाया विहरेज्जा, सा य परक्कमज्जा ; सा य परक्कममाणी पासेज्जासे जा इमा इत्थिया भवइ एगा, एगजाया एगाभरण-पिहाणा, तेल्ल-पेला इ वा सुसंगोपिता, चेल-पेला इ वा सुसंपरिगहिया, रयण करंडकसमाणी,