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आयारदसा
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सूत्र ४
तए णं से सेणिए राया अण्णया कयाइ हाए, कय-बलिकम्मे, फय-फोउयमंगल-पायच्छिते, सिरसा व्हाए, फंठे मालकडे, आविद्धमणि-सुवणे, कप्पियहारहार-तिसरय-पालब-पलंवमाण-कडिसुत्तय-सुकय-सोमे, पिणद्धमोवेज्ज-अंगुलिज्जगे जाव-कप्परक्खए चेव सुअलंकियविमूसिए परिदे ।
उसने एक दिन स्नान किया, अपने कुल देव के समक्ष नैवेद्य धरा, धूप किया, विध्न शमनार्थ अपने भाल पर तिलक लगाया, कुल देव को नमस्कार किया, तथा दुस्वप्नों के प्रायश्चित्त के लिए दान-पुन्य किया। .
बाद में भी उसने शिर-स्नान किया गले में माला पहनी, मणि-रत्न जटित स्वर्ण के आभूषण धारण किए, हार, अर्ध हार, तीन सर (लड़) वाले हार नामि पर्यन्त पहने, कटिसूत्र पहनकर सुशोभित हुआ, तथा गले में गहने एवं अंगुलियों में मुद्रिकायें पहनी....यावत्....कल्पवृक्ष के समान वह नरेन्द्र श्रोणिक अलंकृत एवं विभूपित हुआ।
सूत्र ५
सकोरंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव-ससिव्व पियदसणे नरवई जेणेवा वहिरिया उवट्ठाण-साला, जेणेव सिंहासणे तेणेव उवागच्छइ, उयागच्छित्ता सिंहासणवरंसि पुरत्याभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता फोडुम्बिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी"गच्छह णं तुम्हे देवाणुप्पिया !" जाई इमाई रायगिहस्स गयरस्स बहिया आरामाणि य, उज्जाणाणि य आएसणाणि य, आयतणाणि य
१ यशस्तिलक चम्पू के ८ वें प्राश्वास में पांच प्रकार के स्नानों का वर्णन है। उनमें एक शिरःस्नान भी है।
लम्बे केशपास रखने वाला राजा यदाकदा सुगन्धित द्रव्यों से मस्तक धोकर केश विन्यास करता था और बाद में मुकुटादि धारण कर सुसज्जित होता था।