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छेदसुत्ताणि
१ उम्मायं वा लमज्जा, २ दोहकालियं वा रोगायकं पाउणिज्जा, ३ केवलि-पण्णत्ताओ वा धम्मामो भंसिज्जा।
एक रात्रि की भिक्षु-प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन न करने वाले अनगार के लिए ये तीन स्थान अहितकर, अशुभ, असामर्थ्यकर अकल्याणकर एवं दुःखद भविष्य वाले होते हैं, यथा
१ उन्माद की प्राप्ति, २ चिरकाल तक भोगे जाने वाले रोग एवं आतंक की प्राप्ति, ३ केवली प्रजप्त धर्म से भ्रष्ट होना।
सूत्र ३८
एग-राइयं भिक्खु-पडिमं सम्म अणुपालेमाणस्स
अणगारस्स इमे तो ठाणा हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेसाए, अणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा
१ ओहिनाणे वा से समुपज्जेज्जा, २ मण-पज्जवनाणे वा से समुपज्जेज्जा, ३ केवल-नाणे वा से असमुप्पन्नपुत्वे समुपज्जेज्जा। एवं खलु एगराइयं भिक्खु-पडिमं
महासुयं, महाकप्पं, अहामग्गं, अहातच्चं, सम्मं काएण फासित्ता, पालिता, सोहित्ता, तीरित्ता, किट्टित्ता, आराहित्ता, आणाए अणुपालिता या वि भवति ।
(१२) एक रात्रिक भिक्षु-प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन करने वाले अनगार के लिए ये तीन स्थान हितकर, शुभ, सामर्थ्यकर, कल्याणकर एवं सुखद भविष्य वाले होते हैं, यथा
१ अवधिज्ञान की उत्पत्ति, २ मनःपर्यवज्ञान की उत्पत्ति, ३ अनुत्पन्न केवलज्ञान की उत्पत्ति ।
इस प्रकार यह एक रात्रिकी भिक्षु-प्रतिमा यथासूत्र, यथाकल्प, यथामार्ग और यथातथ्य रूप से सम्यक् प्रकार काय से स्पर्श कर, पालन कर (अतिचारों का) शोधन कर, कीर्तन और आराधन कर जिनाज्ञा के अनुसार विना किसी अन्तर या व्यवधान के) पालन की जाती है।