________________
३१
' द्वितीय अंक। यज्ञमें जो जीव वध किया जाता है, वह अवध अर्थात् अहिंसा है। यज्ञके लिये जो औषधियां, पशुओंके समूह, वृक्ष, तिर्यंच, पक्षी, और मनुष्य मारे जाते है, अर्थात् जिनका हवन किया जाता 'है, वे उत्तमगति अर्थात् खर्गकोप्राप्त होते हैं। और भी कहा है कि,___"सोमाय हंसानालभेत वायवे वलाकाः इन्द्राग्निभ्यां
कौश्चान् मित्राय मद्भून् वरुणाय नक्रान् वसुभ्यः ऋक्षानालभते रुद्रेभ्यो रुरूनादित्याय न्यङ्कन्, मित्रवरुणाभ्यां कपोतान् वसंताय कपिजलानालभेत ग्रीष्माय कलविङ्कान् वर्षाभ्यस्तित्तिरीन् शरदे वर्तिका हेमन्ताय ककरान् शिशिराय विकिरान् समुद्राय शिशुमारानालभेत पर्जन्याय मण्डूकान् मरुद्भ्यो मत्स्यान् मित्राय कुलीपयान् वरुणाय चक्रवाकान् ।"
“सुरा च त्रिविधा-पैष्टी गौडी माध्वी चेति । । सुत्रामणौ सुरां पिवेत् सोमपानं च कुर्यादिति ॥"
अर्थात् " चन्द्रमाकी तृप्ति के लिये हंसोंका, वायुके लिये बगुलोंका, अग्नितथा इन्द्रके लिये क्रौचोंका, मित्रदेवके लिये मद्ओंका (जलकाको का,) वरुणके लिये नक्रोंका (नाकोंका,) वसुके संतोषके लिये रीछोंका, रुद्र के लिये मृगोंका, आदित्यके लिये न्यंकू मृश्रीका, तथा मित्र और वरुणके लिये कबूतरोंका हवन करना चाहिये । वसन्तके लिये कपिजल ( तीतर ) ग्रीष्मके लिये कल
१ मूल संस्कृत पुस्तकमें इस शब्दकी टिप्पणीमें "जलचारीजीवविशेपः" ऐसा लिसा है, परन्तु कोर्पोमें न्यकूको मृगोंका एक भेद लिखा है यथा-"मृगभेदारुरून्यकुरङ्कगोकर्णशम्बराः" इति हैमः ।
--