________________
द्वितीय अंक। अथ द्वितीयोऽङ्कः।
प्रथमगर्भावः।
स्थान-प्रबोधका राजभवन । [सम्यक्त्व आदि सामन्त बैठे हुए हैं । सत्यवती दासी एक ओर खड़ी
हुई है । उपदेश चर (राजदूत) प्रवेश करता है। उपदेश-राजन! कुछ सुना ? प्रबोध-नहीं तो! उपदेश-हरि हर और ब्रह्मा मोहके सहायक हो गये हैं। प्रवोध-मोहादिके साथ मला उनका परिचय कैसे हुआ?
उपदेश-महाराज! परिचय क्या हरि हरादिक तो उनमें तन्मय हो रहे है। बल्कि मायाकी ठगाईके जालने तो उन्हें और सी परस्पर बद्ध कर दिया है।
प्रवोध तव तो वे भी गत्र हो गये!
उपदेश-स्वामिन् ! मोहादि तो ठीक ही है । परन्तु हरि हआदि तो उनकी अपेक्षा भी अधिक द्वेष रखने लगे है।
सम्यक्त्व-आयुष्मन् ! चिन्ता न कीजिये । दयाको बुलवाइये। प्रबोध-(दासीसे ) सत्यवति! दयाको बुला ला। सत्यवती-जो आज्ञा!
(जाती है. परदा पड़ता है।) द्वितीय गर्भावः। स्थान-अन्तःपुर ।
[दया उदास बैठी हुई है, इतनेमें सत्यवती आती है। ] सत्यवती-दये! राजकुलमें तुम्हारा स्मरण हुआ है।
दया-(आश्चर्यमें) क्या प्रभुने मेरा स्मरण किया है? भला तू मुझसे झूठ क्यों बोलती है ?