________________
-
श्रीज्ञानसूर्योदय
ग्रन्थका रहस्य । मोहादिक भाव सब उपाधिरूप चेतनके,
दुखदाई जान वृथा चित्त न भ्रमाइये । ज्ञानादिक भाव ते तो आपहीके खभाव,
तिनको हितकारी जानि चित्तको रमाइये ॥ जिनवानी जोर विना ज्ञानकी न शक्ति कछू,
ताः जिनवानी विना घरी ना गमाइये । ताके अनुसार ध्यान धारि मोहको विडारि, केवल खरूप होय आपमें समाइये ॥
[श्रीभागवन्द्रकवेः]