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________________ ( ४५० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. मोने पीमा क्यांथी होय ?" नारद श्रा प्रमाणे कहीने पढी तुरत त्यांथी नवी अंतःपुरमां गया. ठीकज बे-विशुद्ध शीलव्रत धारण करनारा नारदादिकनुं शुं क्या पण स्खलन होय खरुं ? अर्थात् नज होय. पबी अंतःपुरमां आवता ' एवा नारदने जोइ शैपदी पोतानां मनमां विचार करवा लागी के, "था कुलिंगीनी सेवा भक्ति करवाथी स्वधर्मनुं मलीनपणुं थाय बे. " श्रम धारी तेशे नारदनो आदर सत्कार कस्यो नहि; तेथी नारदने बहु क्रोध चमयो. कह्युं ठे के - जैनधर्मरहित मनुष्योने कोप सुलन होय बे. पी नारद पोतानां चित्तमां विचार करवा लाग्या के, "श्रा ौपदीने चित्तमां बहु लक्ष्मीनो तेमज पोताना पतियोनां मदा पराक्रमनो प्रति अनर्थकारी गर्व थयो, माटे हुं तेना गर्वनो नाश करूं." ग्राम घारीने नारद त्यांश्री निकली धातकी खंमना भरतक्षेत्रनी अमरकंका नगरी प्रत्ये गया. त्यांचपल चित्तवालो ने मदा नुजपराकमवालो पद्मोत्तर नामे राजा राज्य करतो दतो. नारद मुनि तुरत ते भूपतिनी सनामां गया. विस्मय पामेला राजाए पण हर्षथी नारदशषिने प्रासन श्रापी, कुशल समाचार पूर्वी अने फ लादि जोजनथी संतोष पमामी पूठ्युं के, “हे मुनीश्वर ! आलोकमा भ्रमण करता एवा तमोए राजाननां नाना प्रकारनां अंतःपुरो जोयां ठे तो कदो के, कया राजानुं अंतःपुर म्हारां अंतःपुर समान रूपवालुं बे ? ” नारदे कंक' इसीने क. " दे तूप ! तुं खरेखर कूवाना देमका जेवो देखाय बे. कारण जे तने मनमां आवां अल्प रूपवाला अंतःपुरने दीगथी पण प्रति कठोर गर्व थयो. जंबुद्दीपमा रहेला भरतखंरुभां दस्तिनापुर नगरमां प्रचंक पराक्रमवाला पांच पांवो वे, तेमनुं अंतःपुर द्वारा समान बे. ए पांरुवोना अंतःपुरने विषे जे शैपदी नामे स्त्री वे, तेना समानपणाने पामवा त्रलोकनी स्त्रीयो इच्छा करे वे.” जेमने क्लेश कराववोज प्रिय बे एवा नारद मुनि श्रा प्रमाणे कदीने तुरत मरजी प्रमाणे आकाश मार्गे चाली निकल्या. पद्मोत्तर राजा पण शैपदीनां अद्भुत रूपने सांजली वहु कामतप्त थवा लाग्यो. पठी तेणे पोतानां कार्यनी सिद्धि माटे भक्तिश्री कोइ देवतानुं आराधन करवा मांरुयुं. केटलाक दिवसे करेली पूजाथी प्रसन्न थयेला देवताए कह्युं के, “दे वत्स ! वरदान माग. " देवतानां यावां वचनश्री बहु दर्ष पामेला राजाए तेने दिव्य १
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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