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पांव चरित्र. . (४५३ ) जाए पण नमस्कार करवापूर्वक कह्यु के, “हे महारांज! आ म्हाळं राज्य, विन्नव अने बीजु जे कां ते सर्व आपनुंज ." आवी रीते विराटराजाए '. विनंती करेला युधिष्ठिर जोके त्यांथी जवा माटे तैयार थया हता तो पण विराट राजाना आग्रहथी त्यांज रह्या. विराट राजाए हाथ जोमीने अर्जुनना पुत्र अन्तिमन्युने पोताना पुत्री परणाववा माटे हर्षथी युधिष्ठिरनी विनंती करी. आ वातनी युधिष्ठिरे कृष्णने खबर आपी, तेश्री श्री कृष्ण अनिमन्युसहित पोतानी व्हेन सुन्नज्ञने साये लश् बहु सेनाथी परवस्या उता विराटपुरे आव्या. त्यां तेमणे प्रीतिथी नत्तम लमवाला शुन्न दिवसने विषे विराटराजाने अने पांमवोने हर्षकारी एवो अनिमन्युनो अने नत्तरानो लग्नमहोत्सव कस्यो, पनी प्रसन्न मनवाला श्री कृष्ण विराटराजानी रजा ल कुंतीसहित पांमवोने वहु आग्रहथी नत्सवपूर्वक पोतानी नगरी (धारका) प्रत्ये तेमी गया. त्यां यादवोमां श्रेष्ट एवा श्री कृष्ण अने बलन्नना महा आग्रहथी चार नाश्यो चार कन्यानने परण्या अने सुखेथी रहेवा लाग्या.
हे नव्यजनो! आ प्रमाणे पगले पगले लोको नपर बहु नपकार करवाथी महा यशवाला, महा राक्षसोना नयने दूर करवाथी नीम अने अर्जुनवझे नत्सलता पराक्रमवाला, द्यूतने लीधे सर्व राज्यनां विनवश्री नृष्ट श्रयेला, कृ/ त्यादि राक्षणीयोना विघ्नरहित एवा सर्वे पांमवो पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करी मत्स्य देशना अधिपति विराटराजानी नगरीयकी हारकाप्रत्ये गया. इति पांमवचरित्रे नीमबक हिमंबा दिजय हिमंबापाणिग्रहणार्जुनविद्यासाधन खेचरेशदिजय कृत्यादिविघ्ननिवर्तन
गोवालनादिवर्णननाम पंचमोऽधिकारः॥ गर्नमां रहेला जे अनुना अतिशये करीने जितशत्रुराजा पण विजयाराणीनो परान्नव करवा समर्थ यया नहि एवा ते श्री अजितनाथ जिनेश्वर निरंतर नक्तिवंत पुरुषोना अकल्याणोने दूर करो.
पठी दश दाशार्हो, बीजाराजान अने वलन कृष्णादि म्होटा यादवो नेगामली पांमवोनी साथे विचार करता तेनने या प्रमाणे कहेवा लाग्या के, "अहो ! सत्य प्रतिझावाला अने सुकुलमां नत्पन्न श्रयेला तमोए वह दुःख