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________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३०७) मान देदीप्यमान आनूषणोने धारण करनारो, कल्पवृदना पुष्पोथी गुंथेला चोटलावालो, नत्तम वेशने धारण करनारो, डन्निना दिव्य शब्दयी दिशानने बेहेरी करी नाखतो, चंचल कुंमलश्री सुशोनित आकृतिवालो, विश्वने आश्चर्यकारी रूपलक्ष्मीवालो अने सर्व लोकने विस्मय पमामनारो ते देव जयजय शब्दपूर्वक चारे तरफ पुष्पवृष्टि करतो तो प्रगट थयो, कणमात्रमा सर्व छनिमित्त शांत पर गयुं अने "हवे वहाणोने जरा पण नय नथी.” एम धारीने सर्वे मागसो पण स्वस्थ श्रया. पी देवताए गंजीर एवी मधुर वाणीथी कडूं. "हे श्रारुप अमृतना समु अर्हनक श्रावक ! तुं जयवंतो वर्ते बे. त्दारोअवतार श्रेयकारी अने हारुं प्रा मनुष्यत्नवमां जीवित पण वखाणवा योग्य ने.कारण के, मेरुपर्वतनी चूलिकानी पेठे जिनधर्मने विषेत्हारी दृढ श्रावे. हे अर्हन्नक! सांजल.सौधर्म देवलोकनाइंसुविक्रमे हर्षथी पोतानी सन्नामांदारी प्रशंसा करी हती अने एम कडं हतुं के, “ हे देवतान ! सांबलो. जंबुद्धीपना नरतक्षेत्रने विष चंपानगरीमा अर्हन्नक नामनो श्रावक श्री अरिहंत धर्मरुप संपत्तिनुं स्थान बे, जेम वायुथी मेरुपर्वत कंपायमान थतो नथी तेम को पण सुर, असुर, रद के यक पोतानी दिव्य शक्तिवमे ए श्रावकने जैनधर्मथी फोन पमाळवा समर्थ नथी.” (देवता अर्हन्नक श्रावकने कहे जे के,) हे श्रावक! इंश्नां आवां वचन सर्वे सन्नासदोए प्रमाण मान्यां; परंतु में ते न स्वीकारता विचारयुं जे, जो आ परम ऐश्वर्यने धारण करनारो इंश जे जे असत्य 'बोले ते ते मी मीतुं बोलनारा तेना सेवको देवता प्रमाण करे . अहो ! देवतानी श्रागल म्होटा शक्तिवालानी पण गणत्री थती नथी तो पनी फक्त दृढताना वर्णनने विषे आ मनुष्यमात्रनी प्रशंसा शा हिशाबमां . बहु दृढ एवा मनुष्यनी पण धर्मने विषे स्थिरना त्यांज सुधी रहे बे के, ज्यां सुधी को देवता तेने चलावनार मल्यो न होय ? माटे चाल, हुं त्यां जश्ने ते जैन धर्मीनी परीक्षा करूं." आम धारीने में अहिं आवीने बहु माया प्रगट करी. परंतु हे महानाग ! इं२ पोतानी सन्नामां जेवी त्दारी धर्मस्थिरता वखाणी, तेथी परा अधिक में हारी धर्मने विषे स्थिरता जो. हे महालागे ! में जे जे त्हारा अपराधो करया होय ते ते कमा कर.” एम कहीने देवताए अर्दनक श्रावकने बे जोम कुंमलो पाप्यां. पनी ते.विजलीनी पेठे अंत
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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