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________________ __ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३५) वक जिनधर्मने विषे वधारे प्रीतिवालो हतो. ए श्रावक दृढ समकितवालो होवाश्री सुर अने असुरोथी पण दोन पामतो नहि. एक दिवस अर्हनक विगेरे केटलाक श्रावकोए समुह रस्ते पर बीजा देशमा वेपार करवा जवानो विचार करीने विविध प्रकारनी बहु वस्तुनना वहाणो नरी प्रयाण करयु. अनुक्रमे केटलाक दिवस सुधी समुनी मध्ये जता एवा तेनने एक दिवस नाना प्रकारना क्लेशने नत्पन्न करनारा वायु विगेरे बहु पुष्ट चिन्हो देखावा लाग्या. ते वखते सर्व लोकोनां हृदयने विषे खरुप अंधकारने बहु वृद्धि पमामतुं अने सूर्यना किरणोने ढांकी देतुं घोर अंधकार प्रगट थयु. चारे तरफ विजलीना :बकाराअने अतिनयानक मेघना कमाका थवा लाग्या. वली वहागना सर्व मा सोने बहु दुःखकारी एवी घाढ काजलना समूह समान अंधकारनी जाल । सर्व दिशामा फेलाइ गइ. आ वखते राता नेत्रवाला, चूलाना समान आकृति। वाली नासिकावाला, लांबा हाथवाला, वांकी मोकवाला, जामा नंचा करेला बे हायश्री विकराल मूर्त्तिवाला, अंधारा कुवाना समान नान्निवाला, बहु न्हाना पेटवाला, इष्ट खन्नावाला, शुष्क वृक्ष समान गतिवाला, जामनी शाखानी पेठे नंचा करेला हाथवाला अने जाणे सादात् यमराजनो सगोनाइ होयनी? एवा स्वरूपवाला कोश पोतानी पासे आवता एवा वैतालने जो वहाना सर्वे माणसो आकुलव्याकुल अवा लाग्या. एक अर्हन्नक श्रावक विना बीजा सर्वे वणिको दुःखथी अति विह्वल प्रया उता पोतपोताना गोत्रदेवतुं स्मरण करीने तुरत आपत्तिनी निवृत्तिने माटे पोतपोताना इष्टदेवतानी यात्रा, पूजा, नैवेद्य विगेरेनी मानता करवा लाग्या.केटलाक नवीन परणेली स्त्रीना अनुरागथी मोह पामता बतातेनुं ध्यान करवा लाग्या.केटलाक पुत्रना,केटलाक बंधुजनोना, केटलाक व्यना अने केटलाक पोताना वृक्ष माता पितानो निर्वाह चलाववाना ध्यानमां तत्पर अया. वली केटलाक तो मृत्युश्री जय पामीने पोताना नवा बनावेला घरोनोज विचार करवा लाग्या. आम निरंतर महारौ ध्यानने वश ययेला ते सर्वे वणिको "हवे शुं करवू?" तेनो का विचार न सुझवाथी मूढनी पेठे पोतपोताने स्थाने बेसी रह्या. फक्त अरिहंतना धर्मने जागनारा श्रावक शिरोमणि अर्हन्नके, लोकमां आवा कालना समान विन्न करनारा वैलालने । जाएयो; तेश्री ते." श्रावी पुःखी अवस्थामा श्री अरिहंत प्रनुनो धर्म एकज.
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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