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__ श्री बलज बलदेव चरित्र. (शए३ ) मृग ए त्रजणा ब्रह्म देवलोकने विषे महा समृध्विंत देवता थया. . मोह आपवायोग्य एवा ब्रह्मचर्य व्रतने धारण करनारा अने तीव्र तप करनारा 'श्री बलदेव मुनि स्वर्गमां गया ए एक त्हारा चित्तमां आश्चर्यरुप जणाय ने.
तेमज मोक्ष लक्ष्मीना एक मुख्य कारणरुप सुपात्रदान आपतो एवो सुतार पण ब्रह्मदेवलोक प्रत्ये गयो ए पण आश्चर्यरुप , वली तिर्यंच जातिवालो मृग पण दान, शील अने तपक्रिया रहित उतां केवल नबलता जावयोगथी ब्रह्मदेवलोकमां देवता भयो ए पण म्हारा चित्तने विषे आश्चर्य .
हवे ब्रह्म देवलोकने विषे नत्पन्न श्रयेला बलन देवताने त्यां तुरत अवधिज्ञान नत्पन्न प्रयु; तेथी तेमणे प्रेमना स्थानरुप पोताना पूर्वनवना बंधु कृष्णने कुःसह वेदनाथी पीमा पामता त्रीजी नरकने विषे दीग. पनी नरकश्री कृष्णनो नझार करवाने श्चतो ते देव तुरत स्वर्गथकी त्यां गयो अने कृष्णने प्रेमपूर्वक आलिंगन करी कहेवा लाग्यो के, “हे बंधो ! हुं त्हारा पूर्वजन्मनो राम (बलन) नामनो बंधु बु. हुं दीक्षा लश् पांचमा देवलोकमां देवतापणे नत्पन्न भयो बु; परंतु प्रेमने लीधे अहिं त्हारी पासे आव्यो बु.” थाम कहीने बलन देवताए पोतानी अप्रमाण एवी दिव्य शक्तिश्री कृष्णना जीवनो नरकमांथी नार करवा मांझयो; परंतु ते सूर्यश्री गली पमता बरफनो पेठे तुरत गलीने पागे नरकमांज पळवा लाग्यो. कृष्णे का. "हे बंधो! दवे तुं मने मूकी दे. कारण एम करवायी मने बहु पीमा श्राय .” पठी खेदयुक्त चित्तवाला देवताए महा वेदनाथी पीमा पामता कृष्णने मूकी दइने क{. “ हे ना! त्हारा घोर कर्मने लीधेज हुँ तने बीजे स्थानके लइ जवा समर्थ श्रयो नहि; परंतु जो तुं कहे तो हुं त्हारी प्रसन्नताने अर्थे निरंतर अहिं रहुं.” कृष्णे कडूं. “ म्हारा इष्ट कर्मने लीधे प्राप्त श्रयेली आ नरकपीमा तुं म्हारी पासे रहीश, तेथी क्यारे पण दूर श्रवानी नथी, माटे हे ना! बीजी एक वात कहुं ते सांनल अने ते म्हारा चित्तनी प्रसन्नताने माटे जट कर.यापणी घोर अवस्थाने सांजली तथा अग्निश्री धारकाना नाशने सांजली सर्व स्थानके सर्वे खल पुरुषो हर्ष पाम्या ने. परंतु श्रेष्ठ पुरुषोने तो दु:ख नत्पन्न थयु ने, माटे तुं श्रेष्ठ पुरुषोने हर्ष करवा माटे अने खल पुरुषोने खेद करवा