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[हिन्दी-गद्य-निर्माण
लिये स्मृतियों के साहित्य का जन्म हुआ। मनु, अत्रि, हारीत, याचवल्क्य -आदि ने अपने नाम की सहिता बना विविध प्रकार के राजनीतिक सामाजिक
और धर्म सम्बन्धी विषयों का सूत्रपात किया । उन्ही के समकालीन गौतम, कणाद कपिल, जैमिनि, पतजलि आदि हुए जिन्होंने अपने-अपने सोचने का परिणाम रूप दर्शन-शास्त्रों की बुनियाद डाली । यहाँ तक जो साहित्य हुए उनसे यद्यपि वेद की भाषा को अनुसरगा होता गया, परन्तु नित्य-नित्य उनको भाषा अधिक-अधिक सरल कोमल और परिष्कृत होती गई। तथापि उनकी . गणना वैदिक भाषा मे ही की जाती है । इन स्मृतियों और प्रार्य ग्रन्थों की भाषा को हम वैदिक और आधुनिक संस्कृत के वीच की भाषा कह सकते हैं। अव मे संस्कृत के दो खण्ड होते चले जो वेद नथा लोक के नाम कहे-से जाते है । पाणिनि के सूत्रों में, जो संस्कृत-पाठियों के लिये कामधेनु का काम दे रहे है और जिनमे वैदिक और लौकिक सव प्रयोग सिद्ध होते हैं लोक और वेदका निरख अच्छा तरह की पाई है। और इसी वेद और लोक के अलगअलग भेट मे सावित होता है कि सस्कृत किसी समय प्रचलित भाषा थी, जो लोगों के वोलचाल के वर्ताव मे लाई जाती थी।
वेद के उपरान्त रामायण और महाभारत के बड़े-बड़े अग समझे गये। । रामायण के समय भारतीय सभ्यता का प्रेम च्छवास-प रेप्लाचित नूनन यौवन । था; किन्तु महाभारत के समय भारतीय सभ्यता कति-ग्रस्त हो वार्धक्य-भाव को पहुँच गई थी। रामायण के प्रधान पुरुप, रघुकुलावतस श्रीरामचन्द्र थे;
और भारत के प्रधान पुरुप, बुद्धि की तीक्ष्णता के रूप, कूटयुद्ध विशारद, भगवान् वासुदेव श्रीकृष्ण या उनके हाथ मे कठपुतली युधिष्टिर थे । रामायण के समय से भारत के समय मे लोगों के हृद्गत भाव में कितना अन्तर होगया था कि । रामायण में प्रतिददी भाई इस बात के लिये विवाद कर रहे थे कि यह समस्त, राज्य और राज्यसिंहासन हमारा नहीं है. यह सब तुम्हारे ही हाथ में रहे । अन्त मे रामचन्द्र भरत को विचार में पराभूत कर समस्त साम्राज्य उनक हस्तगत कर पाप अानन्द-निर्भर-चित्त हो सस्त्रीक वनवासी हुए। वही महाभारत मे दोदायाद भाई इस बात के लिये कलह करने की सन्नद्ध हुए कि जितने में