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[हिन्दी-गद्य-निर्माण . पंथ हैं सब वैष्णवों की शाखा-प्रशाखायें हैं और सारा भारतवर्ष इन पंथों से
छाया हुआ है । (२) अवतार और किसी देव का नहीं, क्योंकि इतना उपकार ही (दस्यु दलन आदि) और किमी से नहीं साधित हुआ है । (३) नामों को लीजिए तो, क्या स्त्री, क्या पुरुष प्राधे नाम भारतवर्ष से विष्णु सम्बन्धी हैं और आधे मे जगत् है। कृष्ण भट्ट, रामसिंह, गोपालदास, हरिदास, रामगोपान राधा, लक्ष्मी, रुक्मिनी, गोपी, जानकी श्रादि । विश्वास न हो कलेक्टरी के दफ्तर से मुदुमशुमारी के कागज निकाल कर देख लीजिए या एक दिन डॉक घर में बैठकर चिठ्ठियों के लिफाफों की सैर कीजिये । (४)ग्रंथ, कान्य नाटक आदि के, संस्कृत या भाषा के, जो प्रचलित हैं उनका देखिए ! रघुवंश, मात्र, रामायण आदि ग्रन्थ विष्णुचरित्र के ही बहुत हैं (५) पुराण में भारत, भागवत, वाल्मीकि गमायण यही बहुत प्रसिद्ध हैं और यह तीन वैष्णव ग्रंथ हैं । (६) व्रतों में सब से मुख्य एकादशी है वह वैष्णव व्रत है और भी जितने व्रत हैं उनमें श्राधे वैष्णव हैं । (७) भारतवर्ष में जितने मेले हैं उनमें आधे से विशेष विष्णुलीला, विष्णुपर्व या विष्णुतीर्थों के कारण है ! (८) तिहवारों की भी यही दशा है वरंच होली आदि साधारण तिहवारों में भी विष्णु चरित्र ही गाया जाता है । (E) गीत, छन्द चौदह पाना विष्णुपरत्व हैं, दो थाना और देवताओं के । किसी का ब्याह हो, रामजानकी के व्याह के गीत सुन लीजिए । किसी के बेटा हो नन्द बधाई गायी जायगी। (१०) तीर्थों मे भी विष्णु सम्बन्धी ही वहुत हैं । अयोध्या, हरिद्वार, मथुरा वृन्दाबन, जगन्नाथ, रामनाथ, रंगनाथ, द्वारका, बदरीनाथ श्रादि भली-भौति याद करके देख लीजिये । (११) नदियों में गंगा, यमुना, मुख्य हैं, सो इनका महात्मय केवल विष्णुसम्बन्ध से है । (१२) गया में हिन्दू-मात्र को पिण्डदान करना होता है, वहां भी विष्णुपद है । (१६) मरने के पीछे "राम नाम सत्य है" इसी की पुकार होती है । अोर अन्त में शुद्ध श्राद्ध तक 'प्रेतमुक्तिप्रदो भव' आदि वाक्य से केवल जनन्दन ही पूजे जाते हैं । यहाँ तक कि पितृरूपी जनार्दन ही कहलाते हैं । (१४) नाटकों और तमाशों मे रामलीला; रास ही अति प्रचलित है । (१५) सव वेद पुस्तकों के आदि और अन्त में लिखा रहता है ।