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- वैष्णवता और भारतवर्ष ] .
। ८१ सभी कर्मों म ये मन्त्र पढ़े जाते हैं। ऐसे ही और स्थानों में विष्णु को जगत् का रक्षक, स्वग और पृथ्वी का बनाने वाला, सूर्य और अन्धेरे का उत्पन्न करने वाला इत्यादि लिखा है। इन मन्त्रों में विष्णु के विषय में प का परिचय इतना ही मिलता है कि उसने अपने तीन पदों से जगत् को व्याप्त कर रखा है। यास्क ने निरुक्त मे अपने से पूर्व के दो ऋषियों का मत इसके अर्थ मे लिखा है । यथा शाक 'मुनि लिखते हैं कि ईश्वर का पृथ्वी पर रूप अग्नि है, धन में विद्युत् और आकाश मे सूर्य है । सूर्य की पूजा किसी समय समस्त पृथ्वी में होती थी यह अनुमान होता है । सब भाषाओं मे यद्यपि यह कहावत प्रसिद्ध है-कि 'उठते हुए सूर्य को स प पूजता है । अक्षण भाव सूर्य के उदय, मध्य और अस्त की अवस्था का तीन पद मानते हैं। दुर्गा चार्य अपनी टीका में उसी मत को पुष्ट करते हैं । सायणाचार्य विष्णु के बावन अवतार पर इस मन्त्र को लगाते हैं । किन्तु यज्ञ और आदित्य ही विष्णु हैं, इस बात को बहुत लोगों ने एक मत होकर माना है । अस्तुं विष्णु उस समय श्रादित्य ही को नामान्तर से पुकारा हैं कि स्वयं विष्णु देवता आदित्य से निन्न थे, इसका झगड़ा हम यहाँ नहीं करते । यहाँ यह सब लिखने से हमारा केवल यह आशय है कि अति प्राचीन काल से विष्णु हमारे देवता है । अग्नि, वायु और सूय यह तानों रूप विष्णु के हैं। इन्ही से ब्रह्मा शिव और विष्णु यह तीन मूर्तिमान् देव हुए हैं।
. ब्राह्मण के समय मे विष्णु की महिमा सूर्य से भिन्न कहकर विस्तार रूप से वणित है और शतपथ ऐतरेय और तैत्तिरीय ब्राह्मण मे देवताओं का द्वारपाल, देवताओं क्क हेतु जगत् का राज्य वचानेवाला इत्यादि कहकर लिखा है।
- इतिहासो मे रामयण और भारत में विष्णु की महिमा स्पष्ट है, वरच इतिहासों के समय मे विष्णु के अवतारों का पृथ्वी पर माना जाना भी प्रगट है । पाणिनी के समय के वहुत पूर्व कृष्णावतार, कृष्णपूजा
और कृष्णभाक्त प्रचलित थी, यह उनके सूत्र ही से स्पष्ट है । 'यथा जाविकाये चापण्ये वासुदेवः ॥५॥३॥ ६॥ कृष्णं नमॆच्चेत् सुखं वायात् ।३३।१५ इ.
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