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________________ ७९ . वैष्णवता और भारतवर्ष ] अन्य प्रसंग में करेंगे । यहाँ केवल इस बात को दिखलाते हैं कि वर्तमान समय में भी भारतवर्ष से और, वैष्णवता से कितना घनिष्ठ सम्बन्ध है। किन्तु । योरोप के पूर्वी विद्या जानने वाले विद्वानों का मत है कि रुद्र श्रादि आयो । के देवता नहीं (१) वह अनार्यों ( Non-Aryan or Tamalian ) के देवता हैं । इसके वे लोग अाठ कारण देते हैं। प्रथम वेदों में लिङ्ग पूजा का निषेध है । यथा वसिष्ट इन्द्र के बिनती करते हैं कि भारी वस्तुओं को शिश्नदेवा' (लिङ्गपूजक) से बचाश्रो इत्यादि। ऋग्वेद और अन्याय ' ऋचाओं में भी शिश्नदेवा लोगों को असुर दस्यु इत्यादि कहा है और रुद्रामे , . ' भी, रुद्र की स्तुति भयंकर भाव से की है । दूसरी युक्ति यह है कि स्मृतियों में लिङ्गपूजा का निषेध है। प्रोफेसर मैक्समूलर ने वशिष्ठस्मृति के अनुवाद के स्थल में यह विषय बहुत स्पष्ट लिखा है । तीसरी युक्ति वे यह कहते हैं कि लिङ्गपूजक और दुर्गाभैरवादिकों के पूजक, ब्राह्मण को पंक्ति से बाहर करना लिखा है । चौथी युक्ति यह कहते हैं कि लिङ्ग का तथा दुर्गाभैरवादि का, , , निर्माल्य खाने में पाप लिखा है । पॉचा शास्त्रों में शिवमंदिर और भैरवादिकों। 'के मंदिर को नगर के बाहर बनाना लिखा है । छठवें वे लोग कहते हैं कि शैवबीज मन्त्र से दीक्षित और शिव को छोड़कर देवता को न मानने वाले , ऐसे 'शुद्ध शैव भारतवर्ष में बहुत ही थोड़े हैं। या तो शिवोपासक स्मार्त हैं या शाक्त । शाक्त भी शिव को पार्वती के पति समझकर विशेष श्रादर देते हैं, कुछ सर्वेश्वर समझ कर नहीं । जगमादिक दक्षिण मे जो दीक्षित शैव है वे बहुत ' ही थोड़े हैं । शाल तो जो दीक्षित होते हैं वे प्रायः कौल ही हो जाते हैं। और . ___ गाणपत्य की तो कुछ गिनती ही नहीं। किन्तु वैष्णवों में मध्य और रामानुज ' को छोड़कर और इसमे, भी जो निरे अाग्रही हैं वे ही तो साधारण स्मार्ती से । कुछ भिन्न हैं, नहीं तो दीक्षित वैष्णव भी साधारण जन समाज से कुछ भिन्न नहीं और एक प्रकार से अदीक्षित वैष्णव तो सभी हैं। सातवीं युक्ति इन लोगों की यह है कि जो अनार्य लोग प्राचीन काल मे भारतवर्ष में रहते थे । और जिनको आर्य लोगों ने जीता था वह शिल्प विद्या, नहीं जानते थे और इसी हेतु लिङ्ग, ढोका, या सिद्धपीठ इत्यादि पूजा उन्हीं लोगों की है जो अनार्य
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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