________________
१.
८1
[हिन्दी-गद्य-निर्माण टुकड़ा है कि वह सदा गर्म और जलता रहता है । वहाँ वाले उस जमीन को सुहोयम पुकारते हैं । मालूम होता है कि उस जमीन के नीचे गंधक हरताल इत्यादि से किसी चीज की खान है । लोग यहाँ के बड़े सुन्दर लेकिन दगावाज
और झूठे परले सिरे के लड़ाकू भी बड़े होते हैं विशेष करके स्त्रियों मटयारियों से भी अधिक लड़ती हैं। पैर में सूप वाधकर और हाथ में मूसल ले-ले कर झगड़ती हैं वस्ती वहां मुसलमानों की है हिन्दू जितने हैं सब के सब भ्रष्ट मुसलमानों की पकाई रोटी खाने में कुछ भी दोष नहीं समझते थे । काश्मीरी दूसरे मुल्कों मे आकर पंडित और ब्राह्मण वन जाते हैं और वहाँ के मुसलमानों के साथ खाना खाते हैं । कारीगर यहाँ के प्रसिद्ध हैं और शाल वॉफ़तों यहां के से . कहीं नहीं होते । शाल पर यहां की आवहवा का भी बड़ा अमर है क्योंकि यही ; कारीगर यदि इस इलाके से बाहर जाकर बुने कदापि वैसी शाल उनसे नहीं बुनी जावेगी पर इन शालवाफों को वहाँ दो-चार आने रोज से अधिक हाय .. नहीं लगता । महसूल बड़ा है । जितने रुपये का माल तैयार होता है उतना ही उन पर शालवानों से महाराज महसूल लेते हैं । अब वहां सव मिलाकर चारपांच हजार दूकानें शालवाफों की होगी। हमिल्टन साहब के लिखने बजिव एक जमाने मे सोलह हजार गिनी जाती थीं । पश्मीना जिससे शाल बुने जाते हैं कश्मीर में नहीं होता तिब्बत से आता है। वे छोटी-छोटी लम्बे बालों वाली वकरियां जिनके बदन पर असमीना होता है सिवाय तिब्बत के दूसरी जगह नहीं जीतीं । केसर वहां साल भर में सत्तर अस्सी मन पैदा होती है । श्रीनगर काश्मीर की राजधानी है । यह शहर ३३ अश २३ कल उत्तर अक्षांश और. ७४ अंश ४७ कला पूर्व देशान्तर में समुद्र से ५५०० फुट ऊँचा वितस्ता के दोनों किनारों पर चार मील लम्बा वसा है और शहर के बीच में से यह नदी इस तरह पर निकली है कि लोग अपने मकान की खिड़की और बरामदों में पैठे हुए उसमे पानी खींच लेते हैं । यहाँ इस नदी का पाट डेढ़ सौ गज . से अधिक है । एक किनारे से दूसरे किनारे जाने के लिए सात पुल काठ के बने हैं । जब किसी को किसी के यहां जाना होता है बेतकल्लुफ़ कश्ती पर बैठकर चला जाता है। दूसरी सवारी की इहतियाज नहीं पड़ती। गलियां
HTRA