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________________ R s .22111ARC101 यन राजा भोज का सपना]. अहङ्कार ने लगा रखा था। वह कौन सा व्रत व तीर्थयात्रा है जो निरहङ्कार , केवल भक्ति और जीवों की दया से की हो ?. तूने यह तप केवल इसी वास्ते । किया कि जिसमें तू अपने तई औरों से अच्छा और बढ़कर विचारे । ऐसे ही. तप पर गोबर गनेस, तू स्वर्ग मिलने की उम्मेद रखता है। पर यह तो वतला कि मन्दिर के उन मु डेरों पर वे जानवर से क्या दिखाई देते हैं, कैसे सुन्दर, और प्यारे मालूम होते हैं । पर,तो उनके पन्ने के हैं और गर्दन फीरोजे की, दुम में सारे किस्म के जवाहिरात जड़ दिये हैं ।" राजा के जी में. घमण्ड की चिड़िया ने फिर फुरफुरी ली। मानों बुझते हुए दीये की तरह जगमगा उठा। जल्दी से उसने जवाब दिया कि "हे सत्य, यह जो कुछ तू मन्दिर की मुंडेरों ' . पर देखता है मेरे संध्यावंदन का प्रभाव है। मैंने जो रातो जाग-जाग कर और माथा रगडते-रगड़ते इस मन्दिर की देहली को घिसकर ईश्वर की स्तुति, वंदना और विनती प्रार्थना की है वे ही अब चिड़ियों की तरह पंख फैला -- कर श्राकाश को जाती हैं, मानों ईश्वर के सामने पहुंचकर अब मुझे स्वर्ग का । । राजा बनाती हैं । सत्य ने कहा कि राजा, दीनबन्धु करुणा सागर श्रीजगन्नाथ . जगदीश्वर अपने भक्तों की विनती सूदा सुनता रहता है और जो मनुष्य शुद्ध . हृदय और निष्कपट होकर नम्रता और श्रद्धा के साथ अपने दुष्कर्मों का , पश्चात्ताप अथवा उनके क्षमा होने का टुक भी निवेदन करता है वह उसका . 'निवेदन उसी दम सूर्य चॉद को वेधकर पार हो जाता है, फिर क्या कारण कि ये सब 'अब तक मन्दिर- के मुंडेरे पर बैठे रहे ? श्रा.चल, देखें तो सही हम लोगों के पास जाने पर श्राकाश को उड़ जाते हैं या उसी जगह पर परकटे कबूतरों की तरह फड़फड़ाया करते हैं । - भोज डरा लेकिन उसने सत्य का साथ न छोड़ा। जब वह मुंडेरे पर पहुँच तो क्या देखता है कि वे सारे जानवर जो दूर से ऐसे सुन्दर दिखलाई देते थे मरे हुए पड़े हैं; पंख नुचे खुचे और बहुतेरे विलकुल सड़े हुए, यहाँ तक कि मारे बदबू के राजा का सिर भिन्ना उठा। दो एक ने, जिनमे कुछ दम बाकी था, जो उड़ने का इरादा भी किया तो उनका पंख पारे की तरह भारी हो गया और उसने उन्हें उसी ठौर दबा रखा। वे तड़फा जरूर किए , ' ४ पहा
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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