________________
• राजा भोन का सपना]
'. ४७ चढ़ा ले गया जहां से सारा बाग दिखलाई देता था और फिर वह उनसे यो कहने लगा कि भोज, मैं अभी तेरे पाप-कर्मों की कुछ भी चर्चा नहीं करता। क्योंकि तूने अपने तई निरा निष्पाप समझ रखा है, पर यह तो बतला कि तूने पुण्य कर्म कौन-कौन से किए हैं कि जिनसे सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर सन्तुष्ट होगा । राजा यह सुन के अत्यन्त प्रसन्न हुआ । यह तो मानों उसके मन की - बात थी । पुण्य कर्म के नाम ने उसके वित्त को कमल-सा खिला दिया । उसे । निश्चय था कि पाप तो मैंने चाहे किया हो चाहे न किया हो, पर पुण्य मैंने इतना किया है कि भारी से भारी पाप भी उसके पासंग न ठहरेगा। राजा को वहां उस समय सपने में तीन पेड़ बड़े ऊँचे अपनी आँख के सामने , दिखाई दिए । फलों से वे इतने लदे हुए थे कि मारे बोझ के उनकी टहनियाँ , धरती तक झुक गई थीं। राजा उन्हें देखते ही हरा हो गया और बोला कि
सत्य, यह ईश्वर की भक्ति और जीवों की दया अर्थात् ईश्वर , और मनुष्य ', दोनों की प्रीति के पेड़ है, देख। फलों के बोझ मे ये धरती पर नए है । ये तीनों , , मेरे ही लगाए हैं । पहले में तो वे सब लाल-लाल फल मेरे दान से लगे हैं । और दूसरे में वे पीले-पीले मेरे न्याय से और तीसरे में ये सफेद फल मेरे तप का प्रभाव दिखाते हैं । मानों उस समय यह ध्वनि चारों ओर से राजा के कानों में चली आती थी कि धन्य हो ! अाज तुम सा पुण्यात्मा दूसरा कोई ।
नहीं, तुम साक्षात् धर्म के अवतार हो, इस लोक में भी तुमने बड़ा पद पाया । १ है और उस लोक में भी इससे अधिक मिलेगा, तुम मनुष्य और ईश्वर दोनों
की आँखों में निर्दोष और निष्पाप हों। सूर्य मंडल में लोग कलंक बताते , हैं पर तुम पर एक छींटा भी नहीं लगाते। । सत्य बोला कि "भोज, जब मैं इन पेड़ों के पास था जिन्हें तू ईश्वर
की भक्ति और जीवों की दया के बतलाता है तब तो इनमें फल-फूल कुछ भी नहीं थे, ये निरे ट्ठ-से खड़े थे। ये लाल, पीले और सफेद फल कहाँ से आ गए. ? तो मचमुच उन पेड़ों में फल लगे हैं यां तुझे फुसलाने और वश करने को किसी ने उनकी टहनियों से लटका दिए हैं १ चल, उन पेड़ों के पास चल कर देखें तो सही । तेरी समझ मे तो ये लाल-लाल फल जिन्हें तू अपने दान ।