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( २६ ) का विशेष गुण है ही, साथ ही भाव-व्यंजना भी बड़ी मार्मिकता से प्रकट होती है । शब्द-चयन इतनी सुन्दरता से अध्यापक जी ने किया है कि भाषा में एक प्रकार की विलक्षण सजीवता श्रा गई है। लेखन-शैली को आकर्षक
बनाने के लिये बोच-बीच में व्यंगात्मक दृष्टान्तों का प्रयोग भी किया गया । हैं, जिससे विषय अत्यन्त स्पष्ट हो गया है, और पाठकों को भाव ग्रहण
करने में सफलता हो गई है। पं० माधवप्रसाद मिश्र की भौति भाषा की शुद्धता की अंर अध्यापक जी का झुकाव अधिक है। जहाँ पर सीधे-सादे कथानक का वर्णन हुआ है वहाँ सरल भाषा और छोटे-छोटे वाक्यों से उसे
बोधगम्य बनाने की चेष्टा की गई है; किन्तु-- जहाँ विवेचनात्मक भावों को । प्रकट करने का अवसर आया है वहाँ भाषा-शैली गम्भीर और कुछ क्लिष्ट ____ हो गई है। यह स्वाभाविक है । अध्यापक जी की सम्पूर्ण रचना प्रकाशित .. हो जाने से हिन्दी साहित्य को बड़ा गौरव होगा।
. मिश्रबन्धु । ये हिन्दी के प्रतिष्ठित और उच्चकोटि के लेखक हैं । 'हिन्दी नवरत्न' और 'मिश्रबंधुविनोद' द्वारा मिश्रबंधुओं की गद्य-शैली 'का पूर्ण परिचय प्राप्त हो जाता है । आज से लगभग , चालीस वर्ष पूर्व मिभबंधुओं ने हिन्दी संसार में साहित्यिक समालोचकों के रूप में प्रवेश किया था; और तब से अब तक बराबर आप अनवरत रूप से साहित्य-सेवा में लगे हुए हैं। कान्य, नाटक, आलोचनात्मक ग्रन्थ और भिन्न-भिन्न विषयों पर साहित्यिक निवन्ध लिख कर आपने हिन्दी माहित्य की अपूर्व सेवा की है ! अंग्रेजी के विद्वान् होने के कारण इनकी आलोचनाओं में अंग्रेजी आलोचना-शैली को पूर्ण प्रभाव है; और इसी लिए उनमें गम्भीरता तथा विवेचनात्मक पद्धति का समावेश हुआ है। इनकी गम्भीर लेखन-प्रणाली संस्कृत के तत्सम शब्दों के प्रयोग से युक्त है। इनके विषय-चयन में नवीनता, विचित्रता और एक प्रकार की विलक्षणता पाई जाती है, पर भाषा शुद्ध और बोधगम्य बनाने की पूर्ण चेष्टा की गई है । हाँ, कहीं-कहीं उस में पुराने शैली का पडिताऊपन अवश्य झलकता है। इसीलिये