________________
पाहिला और सौंदर्य-दर्शन ]
केसव, कहि न जाइ का कहिये ! देखत तव रचना विचित्र अति, .
समुझि मनहि मन रहिये ॥केसव ॥ ये कवि के स्वाभाविक उद्गार सृष्टि के वाह्य सौंदर्य का आभास दिखला कर अन्तर्जगत् के शाश्वत सौंदर्य की ओर ले जाते हैं; और साहित्य में सम्चे सौंदर्य दर्शन का यही एक मुख्य लक्षण है।