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साहित्य और सौंदर्य-दर्शन ] , ,
૨૨ दसरा प्रांसरिक सौंदर्य । दोनों प्रकार के सौदर्य में परस्पर घनिष्ठ संबंध है।
रोनों ही सौंदर्य सब प्राणियों के लिए आकर्षक और अानंददायक है । यदि । हम सौंदर्य में शाश्वतपन की भावना और श्रद्धा रक्खें तो वाह्य सौंदर्य भी
हमको स्थायी आनंद दे सकता है । वाह्य सौन्दर्य से भी हम अपना शाश्वत संबंध स्थिर कर सकते हैं । मनुष्य की तो बात ही जाने दीजिए, पशु पक्षी भी वाम सौंदर्य को देखकर एक शाश्वत आनंद का अनुभव करते हैं-मयूर मेघ-गर्जन को सुनकर आनंद-पुलकित हो नृत्य करने लगता है । मृग बंशी ' की मधुर ध्वनि सुनकर मुग्ध हो जाता है । पतंग दीपक के सौंदर्य पर अपने को न्योछावर कर देता है । सपं केतकी गध पर मुग्ध हो जाता है । चकोर पूर्णचद्र की शोभा पर टकटकी लगाए रहता है । इसी प्रकार श्वान इत्यादि कुछ प्राणी भीतरी सौदर्य को भी अनुभव कर सकते हैं । माग में चलते हुए कुत्ते भी कभी कभी आपके पास आकर दुम हिलाते हुए अापको प्यार करने लगते है तो क्या वे आपके बाहरी सौंदर्य को देखकर ही ऐसा करते है? नहीं। उनमें आंतरिक सौंदर्य का अनुभव करने की एक ऐसी भावना जागृत होती है कि जो उनको आप की ओर आकर्षित करती है । आप यदि भय शका अथवा घृणा में आकर कुत्ते को दुतकारते हैं, तो भ्रमवश आप उसकी उक्त “पुरातन प्रीति" को नहीं पहचानते; और यदि वह गुस्से मे आकर आप की ओर भौंकता हुआ दौड़ता है, तब भी आप उसके प्रति अपनी "पुरातन प्रीति" का प्रयोग नहींकरते और यदि आप अपने प्रातरिक सौंदर्य अर्थात् पूर्ण प्रेम का सम्पूर्णतया उस पर प्रयोग करें, तो वह बहुत जल्द श्राप का प्रेमी मित्र बन जायगा । सिंह, सर्प इत्यादि हिंस्र जन्तु भी इस प्रातरिक सौंदर्य का पहचानते हैं। जिन ऋषि-मुनियों का श्रान्तरिक सौंदय पता को प्राप्त होता है, हिस जन्तु भी उनके आसपास प्रेम से खेलते रहते हैं। __ मनुष्य प्राणी ब्रह्मा की रची हुई चराचर सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ है और इसमे भीतरी बाहरी सौन्दर्य भी सब से अधिक है। सौंदर्य-निरीक्षण की भावना और उसके अनुभव करने की शक्ति भी मनुष्य में सब से ज्यादा बढ़ी चढ़ी है। मनुष्य में, यह भी शक्ति है कि सौदर्य का वोध करके वह उसमें