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[हिन्दी-गद्य-निर्मास
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देखो। किसी धूल भरे हीरे की कनी में उस सिरजनहार को देखो १ जानो, पतित पददलित अछूत की छाया में उस लीला-बिहारी को देखो। . +
+ तुम न जाने उसे कहाँ खोज रहे हो ? अरे भाई, यही वह कहाँ मिलेगा ? इन मन्दिरों में वह राम न मिलेगा। इन मसजिदों में अल्लाह का. दीदार मुश्किल है। इन गिरजों में कहाँ परमात्मा का वास है ? इन तीर्थों में, वह मलिक रमने का नहीं। गाने-बजाने से भी वह रीझने का नहीं । अरे, इन सब चटक मटक में वह कहाँ ? वह तो दुखियों की आह में मिलेगा। 'गरीबों की भूख में मिलेगा । दीनों के दुःख मे मिलेगा । सो वहाँ तुम खोजने जाते नहीं । यहाँ व्यर्थ फिरते हो।
दीनबन्धु का निवास स्थान दीन-हृदय है । दीन-हृदय ही मन्दिर है दीन-हृदय ही मसजिद है, दीन-हृदय ही गिरजा है । दीन दुर्बल का दिल दुखाना भगवान् का मन्दिर हाना है । दीन को सताना सबसे भारी धर्म: विद्रोह है । दीन की प्राह समस्त धर्म-कर्मों को भस्मसात् कर देनेवाली है ! सन्तवर मलूकदास ने कहा है। “दुखिया जनि कोइ दुखिए, दुखियै अति दुख होय ।
दुखिया रोइ पुकारिहै, सब गुड़ माटी होय ॥" - दीनों को सताकर, उसकी प्राह से कौन मूर्ख अपने स्वर्गीय जीवन को नारकीय बनाना चाहेगा, कौन ईश्वर-विद्रोह करने का दुस्साहस करेगा ! गरीब की आह भला कभी निष्फल जा सकती है.' ' 'तुलसी' हाय गरीब की, कबहुँ न निष्फल जाय !
मरी खाल की स्वांस सों, लोह भसम है जाय ॥ और की बात हम नहीं जानते, पर जिसके हृदय में थोड़ा सा भी प्रेम है, वह दीन दुर्बलों को कभी सता ही नहीं सकता। प्रेमी निर्दय कैसे हो सकता है ? उसका उदार हृदय तो दया का आगार होता है। दीन को वह अपनी प्रेममयी दया का सबसे बड़ा और पवित्र पात्र समझता है। दीन के सकरण । नेत्रों में उसे अपने प्रेमदेव की मनमोहिनी मूर्ति का दर्शन अनायास प्राप्त हो