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[हिन्दी-गद्य-निर्माण " मैं-फूलों को हर कोई डाल में से तोड़ कर तहस-नहस कर डालता
है; काँटों पर हाथ डालने का साहस कोई नहीं किया चाहता। हम लोग पराधीन हैं, बहुत दिनों से फूल बनकर, अपने को तुड़वाते और दूसरों के - विलास की सामग्री बनते चले आते हैं। क्या अब भी हमें कॉटा न बनना, चाहिए ? राणा प्रताप, शिवाजी और गुरु गोविन्द भी यदि मानसिंह, टोडर- . मल आदि की भॉति फूल होते, तो वे भी अपने को तुड़वाकर मुगलों के चरणों पर पड़ने मे ही अपना मनुष्य जन्म सफल हुआ समझते ! जो लोग अभी आपस में ही प्रेम करना नहीं सीखे उनके लिए श्रापका विश्व प्रेम का गीत कितना वास्तविक महत्व रखता है १ ।।
कवि-अनन्त गगन-मण्डल में सूर्य और चन्द्र सब के लिए एक-से प्रकाशित होते हैं, बादल सबके लिए वरसते हैं और
मैं-और सूर्य के तेज चद्रमा की मुसकराहट और बादलों की अश्रुधारा की परवा न करके सबल निवलों को कच्चा ही खाए जाते हैं; धर्म और जाति के नाम पर मिथ्या अहकार का तांडव नृत्य दिखाने वाले ढोंगी लोग सम-: झदार देशभक्तों के मार्ग में कॉटे बखेर रहे हैं. पुलिस और जमींदारों ने प्रजा को मानसिक मृत्यु के घाट कभी को उतार दिया है,, लोग सिंह और व्याघ्र न रह कर झींगर और केचुए बन गए हैं। हे कवे, इस धाँधली से देश की रक्षा कीजिए, अत्याचार से दीनों का त्राण कीजिए, हम लोगों को अपनी मुक्ति का मार्ग बताइये-विश्व-भर की मुक्ति का नहीं। , कवि-परमात्मा की लीला का रसास्वादन करने के निमित्त हमें अपनी प्रात्मा को सूक्ष्मातिसूक्ष्म बनाना होगा, उसको निर्मलं करना होगा। पूर्व और पश्चिम मिल रहे हैं, ध्यान से देखिए । अहा! पर्व में इस अद्भुत सम्मिलनी का कैसा उत्सव मनाया जा रहा है ! प्रकृति का सौन्दर्य प्राज अलौकिक दीख रहा है ! वह अक्षम अानन्द की ओर संमार को बुला रहा है ! वह देखिए ! वह देखिए !
यो कह कर विश्व-प्रेमी कवि मेरे यहाँ से विदा हो गया पर मेरी समझ में उसकी रचना का रहस्य का महत्व रत्ती भर भी न पाया, और मेरा यह