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गद्य-निर्माताओं ने अपनी अपनी स्वाभाविक बोली मे अपना हिन्दी गद्य , लिखा । किन्तु गद्य लिखना हा मात्र उनका उद्देश्य नहीं था । हो मे यद इशा
अल्ला खां का एक मात्र उद्देश्य जनता के सन्मुख ऐसा गद्य उपस्थित करना __ था कि जिसको,विशु ओर, परिमार्जित हिन्दी गद्य कह सके। यह उनकी । उपर्युक्त प्रतिज्ञा से हो सिद्ध होता है। अब यह दूसरी बात है कि वे मुन्शी - सदासुखनाल और पडित सदल मिश्र के समान स्वाभाविक हिन्दो गद्य न लिख — सके । इसका कारण यह है कि वे सैलानो मुसलमान साहित्यकार थे। शायद
उनका रहन-सहन और स्वभाव भी चुहल और बनावट-सजावट पसन्द रहा । होगा क्योंकि वे वादशाहों और नवाबों के एक , सम्मानीय दरबारी कवि
और साहित्यकार थे । इसलिए अपने स्वभाव और रहन-सहन के अनुसार ही उन्होंने अपना स्वाभाविक हिन्दी गद्य भी बनावट और सजावट पूर्ण लिखा। -
- जो भी कुछ हो,हमारे हिन्दी गद्य के इतिहास के जो पृष्ठ इस समय तक ___ खुले हैं, उनसे यह स्पष्ट प्रकट होता है कि हिन्दी गद्य या खड़ी बोली के उत्पा, दन, प्रसारण और पालन में, प्रारम्भिक काल में, मुमलमान साहित्यकारों का
बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है । बाद के अाधुनिक हिन्दी गद्यकारों मे राजा . शिवप्रसाद जी सितारे हिन्द सब के मरदार हैं । इन्होंने विशुद्ध हिन्दी और . मिश्रित हिन्दी दोनों प्रकार का गद्य-निर्माण किया, और शिक्षा विभाग के द्वारा ' हिन्दी और नागरी का प्रचार भी उन्होंने खूब किया। सव से बड़ा कार्य , उन्होंने यह किया कि अपना एक ऐसा उत्तराधिकारी जबरदस्त शिष्य पैदा कर दिया कि जो अाज प्रत्यक्षरूप में हिन्दी का सबसे बड़ा निर्माता, अाधुनिक , हिन्दी का जनक माना जाता है । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के उत्पन्न करने का श्रेय ,
राजा साहब, को ही है । यद्यपि पीछे-पीछे इन गुरु-शिष्यों मे,मतभेद हो गया * था, परन्तु हमारे लिए तो दोनों ही परम पूज्य हैं । अस्तु । अब हम यहाँ पर हिन्दी के अर्वाचीन गद्य-निर्माताओं के विषय में संक्षिप्त विचार प्रकट करेंगे।
। राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द .. राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द काशी के रहनेवाले थे और शिक्षा