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[हिन्दी-गद्य-निर्माण हुए ये ऑखों के कल इशारे, इधर हमारे उधर तुम्हारे । . चले थे अश्कों के क्या फवारे, इधर हमारे उधर तुम्हारे ।
बोलता कोई भी नहीं । सूर्य उसकी युवावस्था की पवित्रता पर मुग्ध है और वह आश्चर्य के अवतार सूर्य की महिमा के तूफान मे पड़ी नाच . रही है । इनका जीवन बर्फ की पवित्रता से पूर्ण और बन की सुगन्धि से । सुगन्धित है । इनके मुख, शरीर और अन्तःकरण सुफेद, इनकी बर्फ, पर्वत ।
और भेड़ें सुफेद । अपनी सुफेद भेड़ों में यह परिवार शुद्ध सुफेद ईश्वर के ' दर्शन करता है। .
जो खुदा को देखना हो तो मैं देखता हूँ तुमको।
मैं देखता हूँ तुमको जो खुदा को देखना हो ।' . भेड़ों की सेवा ही इनकी पूजा है। जरा एक भेड़ बीमार हुई, सब परिवार पर विपत्ति आई। दिन-रात उसके पास बैठे काट देते हैं । उसे अधिक पीड़ा हुई तो इन सबकी ऑखे शून्य आकाश में किसी को देखते देखते गल गई। पता नहीं ये किसे बुलाती हैं । हाथ जोड़ने तक की इन्हें फुरसत नहीं। पर, हॉ, इन सबकी आंखें किसी के आगे शन्द रहित, संकल्प रहित मौन प्रार्थना मे खुली हैं । दो रातें इसी तरह गुजर गई । इनकी भेंड़ अव अच्छी है । इनके घर मगल हो रहा है। सारा परिवार मिलकर गा रहा है । इतने में नीले आकाश पर बादल घिर आये और झमझम बरसने लगे। मानों प्रकृति के देवता भी इनके अानन्द से आनन्दित हुए । बूढ़ा गड़रिया श्रानन्द-मत्त होकर नाचने लगा । वह कहता कुछ नहीं; पर किसी दैवी दृश्य को उसने अवश्य देखा है। वह फूले अंग नहीं समाता, रग-रग उसकी नाच रही है । पिता को ऐसा सुखी देख दोनों कन्याओं ने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर पहाड़ी राग अलापना प्रारम्भ कर दिया। साथ ही धमधम-यमथम नाच की उन्होंने धूम मचा दी। मेरी आँखों के सामने ब्रह्मानन्द का समां बॉध . दिया । मेरे पास मेरा भाई खड़ा था। मैंने उससे कहा-'भाई, अब मुझे भी मेड़ें ले दो।" ऐसे ही मूक जीवन से मेरा भी कल्याण होगा। विद्या को भूल