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[हिन्दी-गध-निर्माण -
सारा जीवन पत्ते में, फूल-फूल मे, फल विखेर रहा है। वृक्षों की तरह . उसका भी जीवन एक तरह का मौन जीवन है । वायु, जल, पृथ्वी, तेज और आकाश की नीरोगता इसी के हिस्से में है। विद्या यह नहीं पढ़ा; जप और तप यह नहीं करता; संध्या-वंदनादि इसे नहीं पाते; ज्ञान ध्यान का इसे पता नहीं, मसजिद गिरजे, मन्दिर से इसे सरोकार नहीं; केवल साग-पात खाकर ही यह अपनी भूख निवारण कर लेता है । ठंढ 'चश्मे और वहती हुई नदियों के शीतल जल से यह अपनी प्यास बुझा लेता है । प्रातःकाल उठकर यह अपने हल. बैलों को नमस्कार करता है और हल जोतने चल देता है। दोपहर की धूर इसे भाती है । इसके बच्चे मिट्टी ही में खेल-खेल कर बड़े हो जाते हैं । इसको और इसके परिवार को वैल और गौवों से प्रेम है। उनकी वह सेवा करता है । पानी बरसानेवाले के दर्शनार्थ उसकी आँखें नीले आकाश की ओर उठती हैं । नयनों की भाषा मे यह प्रार्थना करता है । सायं और। प्रातः, दिन और रात, विधाता इसके हृदय मे अचिंतनीय और अदभुत आध्यात्मिक भावों की वृष्टि करता है। यदि कोई इसके घर आ जाता है तो - यह उसको मृदु बचन, मीठे जल और अन्न से तृप्त करता है । धोखा यह किसी को नहीं देता। यदि इसको कोई धोखा दे भी दे, तो उसका इसे शान नहीं होता, क्योंकि इसकी खेती हरी-भरी है, गाय 'इसकी दूध देती है; बी । इसकी आज्ञाकारिणी है, मकान इसका पुण्य और आनन्द का स्थान है। . पशुओं को चराना, नहलाना,खिलाना पिलाना, उनके बच्चों की अपने बच्चों की तरह सेवा करना, खुले आकाश के नीचे उनके साथ रातें गुजार देना क्या स्वाध्याय से कम है ? दया, वीरता और प्रेम जैसा इन किसानों में देखा जाता है, अन्यत्र मिलने का नहीं। गुरु नानक ने ठीक कहा है.-"भोले भाव - मिले रघुराई" भोले किसानों का ईश्वर अपने खुले दीदार का दर्शन देता है। उनकी फूस की छतों में से सूर्य और चंद्रमा छन-छन कर उनके बिस्तरों पर पड़ते हैं । ये प्रकृति के जवान साधु हैं । जब कभी मैं इन बे-मुकुट के गोपालों का दर्शन करता हूँ, मेरा सिर स्वयं ही झुक जाता है। जव मुझे किसी फकीर के दर्शन होते हैं तब मुझे मालूम होता है कि नंगे सिर, नंगे पांव
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