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[हिन्दी-गद्य-निर्माण में थोड़ी-सी कार्यसिद्धि होगी, पर भगवान् रामचन्द्र का अविकल चरित्र आम भी हमारे पास है जो औरों के चरित्र से ( जो बचे बचाये हैं वा कदाचित् दैवयोग से मिलें ) सर्वोपरि श्रेष्ठ महारसपूर्ण परम सुहावन है, जिसके द्वाग हम जान सकते हैं कि कभी हम भी कुछ थे अथवा यदि कुछ हुआ चाहें तो हो सकते हैं । हममें कुछ भी लक्षण हो तो हमारे राम हमें अपना लेंगे। वानरों तक को तो उन्होंने अपना मित्र बना लिया हम मनुष्यों को क्या मृत्य भी न वनावेंगे १ यदि हम अपने को सुधारा चाहें तो अकेली रामयण से सब प्रकार के सुधार का मार्ग पा सकते । हमारे कविवर वाल्मीकि ने रामचरित्र में कोई उत्तम वात न छोड़ी एवं भाषा भी इतनी सरल रखी है कि, थोड़ी-सी संस्कृत जाननेवाले भी समझ सकते हैं। यदि इतना श्रम भी न हो. सके तो भगवान् तुलसीदास की मनोहारिणी कविता थोड़ी-सी हिन्दी जानने वाले भी समझ सकते हैं, सुधा के समान काव्यानन्द पा सकते हैं और अपना तथा देश का सर्व प्रकार हित-साधन कर सकते हैं। केवल मन लगा के पढ़ना
और प्रत्येक चौपाई का आशय समझना तथा उसके अनुकूल चलने का विचार रखना होगा । रामयण में किसी सदुपदेश का अभाव नहीं है। यदि विचार-शक्ति से पूछिए कि रामायण की इतनी उत्तमता, उपकारता, सरसता : का कारण क्या है, तो यही उत्तर पाइएगा कि उसके कवि ही आश्चर्य-शक्ति से पूर्ण हैं, फिर उसके काव्य का क्या कहना ! पर यह बात भी अनुभवशाली पुरुषों की बताई हुई है फिर इन सिद्ध एवं विदग्धालाप कवीश्वरों का मन कभी साधारण विषयों पर नहीं दौड़ता। वे संसार भर का चुना हुआ परमोत्तम आशय देखते हैं तभी कविता करने की अोर दत्तचित्त होते हैं: इससे स्वयंसिद्धि है कि राम-चरित्र वास्तव मे ऐसा ही है कि उसपर बड़े-बड़े कवीश्वरों ने श्रद्धा की है, और अपनी पूरी कविताशक्ति उसपर निछावर करके हमारे लिए ऐसे ऐसे अमूल्य रत्न छोड़ गए हैं कि हम इन गिरे दिनों में भी उनके कारण सच्चा अभिमान कर सकते हैं, इस हीन दशा में भी काव्यनन्द के द्वारा परमानन्द पा सकते हैं, और यदि चाहें तो संसार परमार्थ दोनों बना सकते हैं। खेद है, यदि हम भारत सन्तान कहाकर इस अपने घर के अमूल्य रत्नों का आदर