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___ रामलीला] ।
न हो वह अन्त को मनुष्य है। इसलिए आर्यवंश में राम ही का जयजय- कार हुश्रा और है और जब तक एक भी हिन्दू पृथ्वी तल पर रहेगा, होता
रहेगा हमारे पालाप में, व्यवहार में, जीवन में, मरण में, सर्वत्र 'राम नाम' 'का सम्बन्ध है । इस सम्बन्ध को दृढ़ रखने के लिए ही प्रतिवर्ष रामलीला होती है। मान लीजिए कि वह सभ्यताभिमानी नवशिक्षितों के नजदीक खिलवाड़ है, वाहियात और पोपलीला है, पर क्या भावुक जन भी उसे ऐसा ही समझते हैं ? कदापि नहीं। भगवान की भक्ति न सही-जिसके हृदय में कुछ भी जातीय गौरव होगा, कुछ भी स्वदेश की ममता होगी वह क्या इस बात को देखकर प्रफुल्लित न होगा कि पर-पद-दलित आय-समाज में इस गिरी हुई दशा के दिनों में कौशल्यानन्दन आनन्दवर्द्धन भगवान् रामचन्द्र जी का विजयोत्सव मनाया जा रहा है १ . . आठ सौ वर्ष तक हिन्दुओं के सिर पर कृपाण चलती रही । परन्तु 'रामचन्द्र जी की जय' तब भी न बन्द हुई। सुनते हैं कि औरंगजेब ने असहिष्णुता के कारण एक बार कहा था कि "हिन्दुओ ! अब तुम्हारे राजा रामचन्द्र नहीं हैं । हम हैं । इसलिए रामचन्द्र की जय बोलना राजद्रोह करना । है।" औरंगजेव का कहना किसी ने न सुना। उसने राजभक्त हिन्दुत्रों का रक्तपात किया सही, पर 'रामचन्द्र की जय' को न बन्द कर सका । कहाँ है वह अभिमानी १ लोग अव रामचन्द्र जी के विश्व-ब्रह्माण्ड को देखें और
उसकी मृण्मय समाधि ( कब्र ) को देखे फिर कहें कि राजा कौन है ? भला । कहाँ राजाधिराज रामचन्द्र और कहाँ एक अहङ्कारी क्षण-जन्मा मनुष्य ।
एक वे विद्वान् है जो राम और रामायण की प्रशंसा करते हैं, राम, चरित्र को अनुकरण योग्य समझते हैं एवं रामचन्द्र जी को भुक्ति-मुक्ति-दाता । मान रहे हैं, और एक वे लोग हैं, जिनकी युक्तियों का बल केवल एक इसी
बात में लग रहा है, कि 'रामायण में जो चरित्र वर्णित है सचमुच किसी व्यक्ति के नहीं हैं, किन्तु केवल किसी घटना और अवस्था विशेष का रूपक
वांधने के लिए लिख दिए गये हैं ।" निरंकुशता और धृष्ठता अाजकल ऐसी , बढ़ी है कि निर्गलता से ऐसी मिथ्या बातों का प्रचार किया जाता है । इस