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श्राजकल के छायावादी कवि और कविता]
१२५' न्तरों तक में श्रादर है। उपनाम धारण की असारेता उर्दूही के प्रसिद्ध कवि चकवस्त ने खूब समझी थी। उनका कथन है
जिक क्यों आयेगा वर्तमे शुअरा में अपना, '
मैं तखल्लुस का भी दुनिया में गुनहगार नहीं। _ अनूठे अनूठे तखल्लुस (उपनाम) लगाने से किसी की' प्रसिद्धि नहींहोती। चकवस्त जी का कौल है- ।।
किस वास्ते. जुस्तजू करूँ शुहरत की,
इक दिन खुद ढ लेगी शुहरत मुझकों। गुण होने ही से प्रसिद्धि प्राप्त होती है। पकड़ लाने की चेष्टा से वह नहीं मिलती। ' कवित्व-शक्ति किसी विरले ही भाग्यवान को प्राप्त होती है । यह शक्ति .. बड़ी दुर्लभ है । कवियशोलिप्सुओं के लिए कुछ साधनों के आश्रय की भाव-.. श्यकता होती है । ये साधन अनेक हैं। उनमें से मुख्य तीन हैं--प्रतिभा (अर्धात् कवित्व-बीज ) अध्ययन और अभ्यास । इनमें से किसी एक और । कभी-कभी किसी दो की कमी होने से मी मनुष्य कविता कर सकता है । परन्तु प्रतिभा का होना परमावश्यक है । विना उसके कोई मनुष्य अच्छा कवि नहीं, हो सकता । महाकवि क्षेमेन्द्र ने अपनी पुस्तक कविकराठाभरण में थोड़े ही में, इस विषय का अच्छा विवेचन किया है । वत्त मान कविमन्यों को चाहिए कि वे उसे पड़े, स्वयं न पढ़ सकें तो किसी संस्कृत से उसे पढ़वा कर उसका आशय समझ लें। ऐसा करने से, (याशा है, उन्हें अपनी त्रु टियों और कमजोरियों का पता लग जायगा। कवित्य शक्ति होने पर भी पूर्ववर्ती कवियों और महाकवियों की कृतियों का परिशीलन करना चाहिए और कविता लिखने का अभ्यास भी कुछ समय तक करना चाहिए । छन्दः प्रभाकर में दिये गये छन्दोरचना के नियम जानकर तत्काल ही कवि न बन बैठना और समाचारपत्रों के स्तम्भों तक दौड़ न लगाना चाहिए। क्षेमेन्द्र ने लिखा है कि कवि बनने की इच्छा रखने वालों के तीन दरजे होते हैं- अल्प-प्रयत्नसाध्य, कृच्छ साध्य और असाध्य । इनमे से पहले दोनों के लिए भी बहुत कुछ अध्ययन, .