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________________ अाजकल के छायावादी कवि और कविता] १२१ करोयह अघटनीय घटना पर लिखना साधारण कवियों का काम नहीं। ___ पर रवि बाबू की गोपनशील कविता ने हिन्दी के कुछ युवक कवियों के दिमाग में कुछ ऐसी हरकत पैदा कर दी है कि वे असम्भव को संभव कर . , दिखाने की चेष्टा में अपने श्रम, समय और शक्ति का व्यर्थ ही अपव्यय कर . रहे हैं । जो काम रवीन्द्रनाथ ने चालीस-पचास वर्ष के सतत अभ्याम और . निदिभ्यास की कृपा से कर दिखाया है उसे वे स्कूल छोड़ते ही, कमर कसकर ध्य' दिखाने के लिए उतावले हो रहे हैं । कुछ तो स्कूलों और कालेजों मे रहते ही रहते छायावादी कवि बनने लग गये हैं ! यदि ये लोग रवीन्द्रनाथ ही की तरह सिद्ध कवि हो जाय और उन्हीं की गुह्यातिगुह्य कवित्व रचना करने मे । भी समर्थ हो जाय तो कहना पड़ेगा कि किसी दिन ' विन्ध्यस्तरेत् सागरम् ।। कविता किस उद्देश से की जाती है ? ख्याति के लिए, यश-प्राप्ति के लिए, धनार्जन के लिए या दूसरों के मनोरञ्जन के लिए । इनके सिवा । तुलसीदास की तरह "स्वान्तःसुखाय' भी कविता की रचना होती है । परमे' श्वर का सम्बोधन करके कोई-कोई कवि अात्मनिवेदन भी कविता द्वारा ही करते हैं । पर ये बातें केवल भक्त कवियों ही के विषय में चरितार्थ होती हैं। अस्मंदादि लौकिक जन तो और ही मतलब से कविता करते या लिखते हैं और उनका वह मतलब ख्याति लाभ और मनोरञ्जन आदि के सिवा और ., कुछ हो ही नहीं सकता । इन सभी उद्वेशों की सिद्धि तभी हो सकती है जव कवि की कविता का प्राशय दूसरों की समझ में झट आ जाय । क्योंकि जो बात समझ ही,में न श्रावेगी उसको दाद देगा कौन १ न उससे किसी का मनोरञ्जन ही होगा, न उसे सुनकर सुननेवाला कवि का अभिनन्दन , ही कर * सकेगा और जब उसके हृदय पर कविता का कुछ असर ही न होगा तब वह कवि को कुछ देगा क्यों ? अब विचार करने की वात है कि वत्तमान छायावादी कवियों की कविता मे श्रोताओं को मुग्ध करने योग्य गुण है या नहीं; इस पर, श्रागे चलकर, हम सप्रमाण विचार करेंगे। ' यहाँ पर यह कहा जा सकता है कि छायावादी. कवि दूसरों को प्रसन्न ।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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