________________
अारानी भाषा विलकुल साफ-सुथरी, मासे बड़ी-बड़ी बाई छटा २ छोटे-छोटे
वाकर भी बहुत कोई अपनी मार जाते हैं, कोई बावश्लेषण करने में है। किसी में कथान
को पढ़ने लग जाते हैं, तब हम को ऐसा भास होता, कि वह ऋषि स्वयं । हमारे सामने खड़ा है, और हम प्रत्यक्ष उससे वात-चीत कर रहे हैं।...
प्रत्येक लेखक अपने शब्दों में अपने प्राण तो फू कता ही है, इसके सिवाय उसका ढग भी अपना अलग होता है। अपने भावों, अपने विचारों
और अपने अनुभवों आदि को भाषा द्वारा प्रकट करने का जो उसका अपना निजी रचना-चमत्कार होता है, उसी को भाषा-शैली कहते हैं । किसी की, शैली में अर्थ और भाव का गाम्भीर्य रहता है। किसी में सिर्फ पद-नालिया। और शन्द-सौष्ठव ही रहता है । किसी की भाषा में प्रवाह का वेग रहता है, तो किसी की भाषा विलकुल.मंथर गति से चलती है। किसी में अलंकारं की छटा रहती है तो किसी की भाषा साफ-सुथरी. मजी हुई, विलकुल सीधी-सादी रहती है। कोई छोटे-छोटे वाक्यों मे ही, विचित्र ढङ्ग से, बड़ी-बड़ी बातें कह जाते हैं, कोई बड़े-बड़े वाक्य लिख कर भी बहुत कम 'कह पाते हैं। कोई : मानसिक भावों का विश्लेषण करने में बड़े पटु होते हैं, कोई अपनी भाषा -
में चरित्र-चित्रण करना अच्छा जानते हैं । किसी में कथानक की रोचकता • दिखाई देती है, तो कोई घटना का यथार्थ चित्र खींचना बहुत अच्छा जानते. हैं । सारांश यह है कि भिन्न-भिन्न रचनाकार अपनी-अपनी, कोई न कोई, निजी विशेषता अवश्य रखते हैं । औरण्यही उनकी निजी विशेषता उनकी रचना... शैली कहलाती है। कोई भी लेखक यद्यपि किसी विशेष गद्य-शैली का निर्माता : नहीं हो सकता, फिर भी अपनी निजी विशेषता प्रत्येक गद्यकार रखता है। इसलिये जो नवयुवक लेखन-कला सीखना चाहते हैं, उनको प्रत्येक प्रकार. की गद्य-शैली का आलोचनात्मक अध्ययन अवश्य करना चाहिये। इसी हेतु यह "हिन्दी गद्य-निर्माण” नामक पुस्तक नवयुवक विद्यार्थियों के लिए सम्पादित की गई है । हम पहले ही कह चुके हैं कि वर्तमान हिन्दी गद्य का निर्माण हम राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द के समय से मानते हैं। इसके पहल. जिन पूर्वजों ने हिन्दी गद्य लिखा उनकी शैली वर्तमान काल से भिन्न है। वह एक प्रकार से चर्तमान हिन्दी गद्य का प्रारम्भिक काल है। इतिहास-की चीज है। उस समय-हिन्दी गद्य कैसा होना चाहिए-इस विषय का कोई आन्दो
is यह है कि
औरण्यही उनका विशेष गद्य
.
.
उनकी रचना
लये जो नवया अपनी निजी किसी विशेष ग