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________________ प्रतिसेवाधिकार ६३ Manuntukaram. . . . .. कर आहार ग्रहण करे तो एककल्याणक मायश्रित्तका भागी. होता है॥२॥ शब्दाद्भयानकाद्रूपादुत्त्रस्येदंगमाक्षिपेत् । मिथ्याकारः स्वनिंदा वापंचकंवा पलायने॥९॥ ___ अर्थ-भयानक शब्द सुनकर या आकृति देखकर कंपने लग जाय और शरीर गिर पड़े तो उसका क्रमसे मिथ्याकार और आत्मनिंदा प्रायश्चित्त हैं। तथा डरक पारे भग जाय तो कल्याणक है। भावार्थ-भयानक शब्द सुनकर और आकृति देख कर शरीर कपकपाने लग जाय तो यध्या मे दुष्कृत मेरा दुष्कृत मिथ्या हो यह यिथ्याकार वचन उस दोपकी शुद्धिका प्रायश्चित्त है। और यदि उक्त कारणवश शरीर गिर पड़े तो उसकी शुद्धिका उपाय अपनी निंदा कर लेना है। तथा उक्त कारणोंको पाकर भग जाय तो उसका एक कल्याणक पायश्चित्त हैं। यहां पर दोनों वा शब्द विकल्पार्थक हैं जो कचित अवस्थाविशेषम व्यभिचारको सूचन करते हैं अर्थात् व्याधि आदिके वश उक्त दोप लग जाय तो प्रायश्चित्त नहीं भी हैं ॥शा कराधाकुंचने स्पर्धादायामे पुरुमंडलं।। उत्क्षेपे पंचकं मासः पाषाणस्य लघोगुरोः ॥१४॥ __ अर्थ-संघर्पणवश हाथ पैर आदिको सिकोड़ लेने और पसार देनेका प्रायश्चित्त पुरुषंटल है। तथा छोटे पत्थर फेंकने
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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