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प्रायश्चित्तमरने पर, बालकके मरने पर, और मिध्यादृष्टि संन्याससे मरने पर गृहस्थ व्रतमें तत्काल शुद्धि है। भावार्थ--उक्त प्रकारसे यदि कोई वजन मर जाय तो गृहस्थोंको उसका सूतक नहीं है॥१५२॥ ब्राह्मण क्षत्रविदछद्रा दिनैः शुद्धयंति पंचभिः। दशद्वादशभिः पक्षायथासंख्यप्रयोगतः ॥१५३।।
अर्थ-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्ध ये अपने किसी खजनके मर जाने पर क्रमसे पांच दिन, दश दिन, वारह दिन और पंद्रह दिन बीत जानेसे शुद्ध होते हैं। भावार्थ-ब्राह्मण पांचदिनसे, क्षत्रिय दश दिनसे, वैश्य बारह दिनसे और शूद्र पंद्रह दिनसे शुद्ध सूतकरहित होते हैं। यहां प्राचार्य संप्रदायका.. ' भेद मालूप पडता है-अन्य शास्त्रोंमें ब्राह्मणके लिए दशदिन : और क्षत्रियों के लिए पांच दिनका सूतक बताया गया है। अथवा उक्त पाठके स्थानमें ब्राह्मणविदछद्राः” ऐसा पाठ हो तो ठोक समानता पैठ जाती है। अस्तु, कई वि आचार्योंका मतभेद पाया जाता ह संभव है यहां भी वह हो ॥ . कारिणो दिविधा सिद्धा भोज्याभोज्यप्रभेदतः। भोज्येष्वेव प्रदातव्यं सर्वदा क्षुल्लकव्रतं ॥१५४॥ ..
अर्थ-शूद्र भोज्य और अभोण्यके भेदसे दो तरहके ह । - जिनके यहांका आहार-पानो ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र ,
है वे भोज्य कारु होते हैं इनसे विपरीत अर्थात् जिनका : आहारपानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शद नहीं खाते पीते थे.
कडे विषयोंमें ।