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________________ प्रायश्चित्त २०० memornimawwwimirm Aasam वस्त्रस्य क्षालने घाते विशोषस्तनुसर्जनं। प्रासुकतोयेन पात्रस्य धावने प्रणिगद्यते ॥११॥ ___ अर्थ-वस्त्रके धोने में जलकायके जीवोंकी विराधना होने. पर एक उपवास और मासुक जलसे भिक्षाके पात्रों को धोनेका : एक कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त है ॥ ११ ॥ वस्त्रयुग्मं सुवीभत्सलिंगप्रच्छादनाय च । आर्याणां संकल्पेन तृतीये मूलमिष्यते ॥११९॥ .. अर्थ-आयिकाओंको गुप्त अंगको ढकनेके लिए दो वस्त्र. रखना चाहिए। इन दो वस्त्रों के अलावा तीसरा वस्त्र धारण... करने पर उसके लिए पंचकल्याण प्रायश्चित्त कहा गया है ।.. याचितायाचितं वस्त्रं भक्ष्यं च न निषिद्ध्यते। दोषाकीर्णतयाणामप्रासुकविवर्जितं ॥१२०॥ __ अर्थ-आर्यिकाएं हमेशा अनेक दोषांसे लिप्त रहती ही हैं इस कारण मांगनेसे प्राप्त हुआ किंवा विना ही मांगे स्वयमेव प्राप्त हुए निर्दोष वस्त्रोंको और भिक्षा-पात्रों को पास रखनेका अथवा स्वस्थान पर भिक्षा लानेका उनके लिए निषेध नहीं है । तरुणी तरुणेनामा शयनं गमनं स्थिति । .. विदधाति ध्रुवं तस्याः क्षमाणां त्रिंशदुदाहृता ॥ अर्थ-जो तरुण आर्यिका तरुण मुनिके साथ शयन करती हो, गमन करती और साथही रहती हो या कायोत्सर्ग करती हो .लिए तीस उपवास प्रायश्चित्त कहे गये हैं ॥ १२१॥ ::
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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