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चुलिका । .................... ......
अथ-जीव-जन्तु रहित प्रदेशमें संथारेको न शोधकर सोये हए अप्रपा मुनिको कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त ओर प्रमत्त मुनिको उपवास प्रायश्चित्त देना चाहिए तथा जीव-जन्तुओंसे युक्त प्रदेशमं संथारेको न शोधकर सोये हुए अप्रमत्त मुनिको उपवास
और प्रमत्तको कल्याण प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥३॥ लोहोपकरणे नष्टे स्यात् क्षमांगुलमानतः। केचिद्धनांगुलैरूचुः कायोत्सर्गः परोपधौ ॥८॥ __ अर्थ-मूई, नहनी, छुरा प्रादि लोहकी चीजें नष्ट कर देने पर जितनी अंगुलको व चोजें हों उतने उपवास प्रायश्चित्तमें इन चाहिए। कोई कोई प्राचार्य घनांगुलके हिसावसे उक्त चीनांक नाशका मायश्चित्त बताते हैं अर्थात वे कहते हैं कि उस नाश किये गये लोहांपकरणके जितने घनांगुल हों उतन उपवास प्रायश्चित्त देने चाहिए । तथा संथारा, पिच्छी, कमंडलु
आदि दसरकी चीज नाश कर देने पर कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥४॥ रूपाभिघातने चित्तदूपणे तनुसर्जनं। खाध्यायस्य क्रियाहानावेवमेव निरुच्यते ॥८॥
अर्थ-मिति कागज आदि पर लिखित मनुष्य आदिके मतिथियोंका नाश करने पर, विपयाभिलाप आदि दुष्ट परिगामोंक करने पर, और खाध्याय क्रियाकी हानि करने पर कायोत्सर्ग मायश्चित्त कहा गया है॥५॥ ।