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________________ चूलिका । १७५ ग्राममें जाकर भिक्षाके लिये पर्यटन करे तो उसके लिए प्रतिक्रमण सहित उपवास प्रायश्चित्त है ॥५६॥ खाध्यायरहिते काले ग्रामगोचरगामिनः। कायोत्सर्गोपवासौ हि यथाक्रममनूदितौ ॥ ६॥ अर्थ-जो साधु स्वाध्यायके समयमें स्वाध्याय क्रिया अथवा भागमाध्ययन न कर नामान्तरको चला जाय या भिक्षाके लिए चला जाय तो उसको क्रमस अर्थात् ग्रामान्तर गये हुएको कायोत्सर्ग और भिक्षाके लिए गये हुएको उपवास मायश्चित्त देना चाहिए ॥६॥ ___ आगे आदाननिक्षेपण समितिके विषयमें कहा जाता हैकाष्ठादि चलयेत् स्थानात क्षिपेद्वापि ततोऽन्यतः। कायोत्सर्गमवाप्नोति विचक्षुविषये क्षमा ॥६१॥ __ अर्थ-जो मुनि काष्ठ, पत्थर, तृण, खपरे आदि वस्तुओंको उनके स्थानसे हृदावे-हिलावे अथवा एक स्थानसे उठाकर दूसरे स्थानमें ले जाय तो वह एक कायोत्सर्गको प्राप्त होता है। और यदि अंधेरेमें ऐसा करे तो उपवास प्रायश्चित्तको प्रास होता है ॥६॥ ... अब पंचम प्रतिष्ठापना समिति संबंधी प्रायश्चित्त कहते हैं:ऊर्ध्वं हरिततृणादीनामुच्चारादिविसर्जने। कायोत्सर्गों भवेत्स्तोके क्षमणं बहुशोऽपि च ॥ . अर्थ-सचित्त घास आदि शब्दसे बीज, अकुर, शिला--
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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