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प्रायश्चित्तके आहार ग्रहण करे तो क्रमसे उपवास और षष्ठ मायश्चित्त है। भावार्थ-रात्रिमें उक्त कारण वश एक प्रकारका आहार ग्रहण करे तो उपवास और चारों प्रकारका आहार ग्रहण करे तो षष्ठ प्रायश्चित्त है ॥३३॥ व्यायामगमनेऽमार्गेपासुकेऽप्रासुकेमतेः। .. कायोत्सर्गोपवासौ स्तोऽपूर्णक्रोशे यथाक्रमम् ॥
अर्थ-व्यायामनिमित्त जन्तुरहित-पासुक उन्मार्ग (पगडंडी)होकर और जन्तुसहित अप्रासुक उन्मार्ग हो कर जो यति अधूरे कोशतक गमन करे तो उसके लिए क्रमसे कायोत्सर्ग और उपवास प्रायश्चित्त है। भावार्थ-पासक उन्मार्ग हो कर गमन करनेका कायोत्सर्ग और अमासुक उन्मार्ग होकर गमन करनेका उपवास प्रायश्चित्त है ॥ ३४॥ घननीहारतापेषु क्रोशैर्वन्हि स्वरग्रहै। क्षमणं प्रासुके मार्गे द्विचतुःषड्भिरन्यथा ॥३५॥ __ अथ-वर्षाकाल, शीतकाल, और उष्णकालमें प्रासुक मार्ग होकर क्रमसे तीन कोश, छंह कोश और नौ कोश गमन करे और अमासुक मार्ग होकर क्रमसे दो, चार, छह कोश गमन करे तो एक उपवास प्रायश्चित्त है। भावार्थ-वरसातमें मासुक मार्ग होकर तीन कोश, और मासुक मार्ग होकर दो कोश, शीमें प्रासुक मार्ग, होकर छह कोश और और अप्रामुक मार्ग