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चूलिका। हैं। तथा अर्कशब्दसे बारह और ग्रह शब्दसे नौ संख्याका ग्रहण है क्योंकि सूर्य बारह और ग्रह नौ होते हैं॥६॥ निष्प्रमादः प्रमादी च प्रत्येकं सस्थिरोऽस्थिरः। मूलधार्युत्तराधारस्तस्यासंज्ञिविघातिनः ॥७॥
अर्थ-संज्वलनकपायके तीनोदयको प्रमाद कहते हैं इस भमादसे रहितका नाम निपमाद है। और जिसके प्रमाद विद्यमान है वह प्रमादी है। निष्पमाद और प्रमादी दोनोंके स्थिर और अस्थिर ऐसे दो दो भेद हैं। इसमकार मूलगुणधारीके निष्पमाद प्रमादी, स्थिर, और अस्थिर ऐसे चार भेद हैं। उत्तरगुणधारीके भी इसी तरह चार भेद हैं। इन चार चार भेदोंसे युक्त मूलगुणधारी और उत्तरगुणधारीके प्रसंज्ञो नीवके वधका प्रायश्चित्त नीचेके श्लोक द्वारा बताते हैं ॥७॥ उपवासास्त्रयः षष्ठं षष्ठं मासोलघुः सकृत् । कल्याणं त्रिचतुर्थानि कल्याणं षष्ठकंक्रमात् ॥
अर्थ-उपर्युक्त पाठ पुरुपोंके एकवार असंक्षि घातका प्रायश्चित्त क्रमसे तीन उपवास, दो उपवास, पुनः दो उपवास, लघुमास, कल्याण, तीन उपवास, कल्याण और पष्ट है। भावार्थ-मूलगुणधारी स्थिर प्रयलचारीको एकवार असंबीके घातका तीन उपवास, स्थिर अप्रयत्नचारीको दो उपवास, अस्थिर भयत्नचारीको दो उपवास, अस्थिर अप्रयत्नचारीको लघुमास-कल्याण प्रायश्चित्त और उत्तरगुणधारी स्थिर