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________________ छेद-अधिकार ॥७॥ अव दश प्रकारका प्रायश्चित्त कहा जाता है। प्रथम प्रायश्चित्तका लक्षण और निरुक्ति कहते हैं- . प्रायश्चित्तं तपः श्लाघ्यं येन पापं विशुद्धयति । प्रायश्चित्तं समाप्नोति तेनोक्तं दशधेह तत् ॥ ___ अथ-प्रायश्चित्त नामका तपश्वरण अत्यंत ही श्लाघ्य तपश्वरण है जिसके कि अनुष्ठानसे इस जन्ममें और पूर्वजन्ममें उपाजन किये हुए पाप नष्ट हो जाते हैं तथा प्रायः-लोक अर्थाद साधीवर्गका चित्त-मन प्रसन्न होता है। इस कारण वह प्रायश्चित्त यहां दशप्रकारका कहा गया है। तदुक्तंप्राय इत्युच्यते लोकस्तस्य चित्तं मनो भवेत् । तञ्चितग्राहकं कर्म प्रायश्चित्तमिति स्मृतं ॥ प्रायोनाम लोक अर्थात् साधर्मीवर्गका है और चित्त नाम मनका है। साधमियाँक मनको ग्रहण करनेवाले अर्थात् उनके मनको प्रसन्न करनेवाले क्रिया-कर्मको पाश्चित्त कहते हैं। प्रायो नाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चयनं युतं । तपोनिश्चयसंयोगात् प्रायश्चित्तं निगद्यते ॥ पायो नाम तपका है और चित्त नाम निश्चययुक्तका है।
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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