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[ ६७ ] सतगुरु तणा हुसेन, भला दइता सां भिडिौ । हणमत करिसे हाक, प्रघळ पापी नर पडिसै ॥ असरां रै ऊपरा, दइव आपरा फिर दव । कूडा ना कापिस, प्रभु जण लडिस पाडव । हरि साथि साध सवळा हुया, जगजीवन तारण जगत । किलग ने कस भेळा किया, भूधर रा जीता भगत ।।१४७॥ भूवरजी नी भूप, तना पूर्ज दशरथ-तण । गुण गध्रप विरिण ग्यान, जख कोदर पित्तर जण । केई देव रिषि कोडि, प्रघळ चारण सुख पाये। माहव नां मोतीये, ब्रह्म माहैस वधाय । कळि जुग तणि जड काढिवा, यावी भलो अचकरी। फर वरी पहवि ऊपरि फिरै, निमो फौज निकळक री॥१४८।। इगि निकळक नरेसि, भ्राति सिगळो ही भागी। हुया हरखि पोछाह, जोति अति घरि घरि जागी। इळि नोळो अति अव, केई ऊगा कळिपतर । अन्न नीपिजस अधिक, प्रैज पालिसै परमेसर । ससि नणी कलक जाइसै सही, गोतिम त्री अहिला लजा। वधायौ प्रम पदमावती वळो सतवती सुरज्या ॥१४६॥
॥ दूहा ॥ ग्रे सतवती सुरज्या, नरिद किलग री नार॥ इण निकळक रै ऊपरा, अति प्रारती उतार ॥१५०॥ इम्या लेसै उवारण, तू आतिम आधार । सावत्री साराहीयो, श्री निकलक अवतार ॥१५१। नीको जगरौ नाम निज, परिणजे निकळक पात्र । सहि छात्रा ऊपरि सर, श्रिया कत री छात्र ॥१५२||! रीत भली की रामचन्द्र, अधिक अमोलक ग्रह । वसु हुँ तणे सिर वरससै मागै तारा मेह ।।१५३||