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मुर भुयणां रा महत तोब दरबार तमारा । कहै मेर किमेर, हमें गिमि पाप हमारा । उदधि सात सिधि प्राठ अधिकि लोटे इंद्रादिखि । सहि नाचे सुर त्रीश्रां, राग ऊचरे द्वादस रिखि । छडकाउ करें वारह सघरण, वेद च्यार नव व्याकरण | किसन रा पाउ गंगा कन्ही, प्राच जोडि ऊभै रण ॥११५॥ अरण गुरड़ ओळगे, दिये परिकरमा दिरगीअर । सिनिकादिखि समरा, विरिद दे बारट ईसर । किसन सामि रे कन्ही, सपत रिषि करें सलामा । जपै तिथकर जाप, तोब ताहरा गुलांमा । नाग सुरनाय माणस नही, साचा ना दरिसरग सहल | अकरुर भगत आदेसियो, महराजा भामी महळ ॥ ११६ ॥ ॥ दूहा ॥
महाराजा भामी महळ, नर सुर नागा तूर । कुशळ नही कंस केसरे या दाखै प्रकरूर ॥११७॥ चडि अकरूरि चलावीया मथुरा दिसा मुरारि । मिळीया परिगट राह मा, हुई धीक मन्हहारि ॥ ११८ ॥ प्रभु झड़िपिया पगरण कहो कस रइ काह । नरहरि ग्वाळ निवाजीया सहिस मये सिर पात्र ॥ ११६ ॥ आए मथुरा मे अनंत, तोब पराक्रम तार । हरि लुटाई हाटडा, बहनामी बाजार ॥१२०॥ माळी फूल समापीया, कुविज्या निमो कपाळ । भगता सु भूवर भलो, किसन दईतां काळ ॥१२१॥ ॥ कवित्ति ॥
किसन दईता काळ, साम कुविज्या रो साथी । पाच मल पाडीया हेक ते हरणीयो हाथी । बाथा आयो वाळ प्रभु चाणोरय के 1 ग्वाळ अने गोविंदे घनख भाजीयो घर्केहाँ ।